नए आपराधिक कानूनों के खिलाफ याचिका पर विचार करने से शीर्ष अदालत ने किया इनकार

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने तीन नए आपराधिक कानूनों के खिलाफ दी गई याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है. तीन नए आपराधिक कानूनों के खिलाफ वकील विशाल तिवारी ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी.

याचिका में उठाए गए थे यह सवाल

याचिका में दावा किया गया था कि नए आपराधिक कानूनों में कई विसंगतियां हैं. याचिका में कहा गया था कि नए आपराधिक कानूनों को लागू करने से रोक की मांग की गई है. आरोप है कि इन कानूनों पर संसद में बहस नहीं हुई और जब विपक्षी सांसद निलंबित थे, तब इन कानूनों को संसद से पास करा लिया गया था.

याचिका में मांग की गई थी कि विशेषज्ञों की एक समिति गठित की जाए, जो आपराधिक कानूनों की व्यावहारिकता की जांच करे. याचिका में आरोप लगाया गया था कि नए आपराधिक कानून कहीं अधिक कठोर हैं और इससे देश में पुलिस का राज स्थापित हो जाएगा. ये कानून देश के लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. ये कानून अंग्रेजी कानूनों से भी ज्यादा कठोर हैं. पुराने कानूनों में किसी व्यक्ति को 15 दिनों तक पुलिस हिरासत में रखने का प्रावधान है, लेकिन नए कानूनों में यह सीमा बढ़ाकर 90 दिन कर दी गई है.

नए कानूनों में देशद्रोह कानून को नए अवतार में लाया जा रहा है और इसके दोषी को उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. लोकसभा में बीती 21 दिसंबर को तीन नए आपराधिक कानूनों- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य विधेयक को मंजूरी मिली थी. ये कानून मौजूदा कानूनों इंडियन पीनल कोड (आईपीसी), सीआरपीसी और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह लेंगे. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25 दिसंबर को इन कानूनों को मंजूरी दे दी थी.

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