New Delhi : वोट के लिए नोट मामले में सुप्रीम कोर्ट का हम फैसला या है. सुप्रीम कोर्ट ने झामुमो रिश्वत मामले में पिछले फैसले को पलट दिया है. 1993 में नरसिंह राव की सरकार को बचाने के लिए झामुमो के सांसदों पर यह आरोप लगा था. कोर्ट ने कहा कि सांसदों को राहत देने पर असहमत हैं. चीफ जस्टिस डीवाइ चंद्रचूड़, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ ने फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा घूसखोरी की छूट नहीं दी जा सकती है.
कोर्ट की ओर से इस दौरान कहा गया कि इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि घूस लेनेवाले ने घूस देनेवाले के मुताबिक वोट दिया या नहीं. विषेधाधिकार सदन के साझा कामकाज से जुड़े विषय के लिए है. वोट के लिए रिश्वत लेना विधायी काम का हिस्सा नहीं है.
सीता सोरेन पर पड़ेगा असर
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने 1998 का नरसिंह राव मामले का फैसला पलट दिया. मामले में चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 7 जजों की बेंच का यह साझा फैसला है जिसका सीधा असर झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की सीता सोरेन पर पड़ेगा. उन्होंने विधायक रहते रिश्वत लेकर 2012 के राज्यसभा चुनाव में वोट डालने के मामले में राहत मांगी थी.
सांसदों को अनुच्छेद 105(2) और विधायकों को 194(2) के तहत सदन के अंदर की गतिविधि के लिए मुकदमे से छूट हासिल है. कोर्ट ने साफ किया कि रिश्वत लेने के मामले में यह छूट नहीं मिल सकती है.
क्या है मामला
1993 में नरसिंह राव की सरकार को बचाने के लिए झामुमो के सांसदों पर पैसे लेकर वोट देने का आरोप लगा था. इस पर 1996 में 5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था कि संसद के अंदर जो भी कार्य सांसद करते हैं वह उनके विशेषाधिकार में आता है. लेकिन अब शीर्ष अदालत ने उस विशेषाधिकार की परिभाषा को ही बदल दिया है.बेंच ने कहा कि अनुच्छेद 105 आम नागरिकों की तरह सांसदों और विधायकों को भी रिश्वतघोरी की छूट नहीं देता है.
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