Manoj Kumar Pintu
Giridih: अगले महीने के शुरूआत या मध्य में लोकसभा चुनाव के तारीखों का एलान होने की संभावना जताई जा रही है. माना जा रहा है कि चुनाव आयोग की ओर से तारीखों की घोषणा के साथ ही देश में आचार संहिता लागू हो जाएगा. वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दलों ने भी अपनी ओर से संभावित सीटों पर उम्मीदवारों के नामों को लेकर नामों की तलाश शुरू कर दी है. केंद्र में सतारूढ़ भाजपा की तैयारी सबसे हटकर देखने को मिल रही है. झारखंड प्रदेश के 14 लोकसभा सीटों में दमदार उम्मीदवार की तलाश में रायशुमारी का काम भाजपा ने शुरू कर दिया है. इसी क्रम में गिरिडीह लोकसभा सीट को लेकर सोमवार को हुए रायशुमारी में मंडल अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष और जिला महामंत्री से लेकर बड़े नेताओं से चार नाम मांगे गए. इस रायशुमारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस बार भाजपा गिरिडीह लोकसभा सीट अपने लिए ही सुरक्षित रखना चाहती है. आजसू को इस बार यह सीट नही मिलने जा रहा है.
रायशुमारी में आए नाम भी बेहद चौंकाने वाले हैं. पार्टी सूत्रों की मानें तो कमल संदेश पत्रिका के एडिटर शिवशक्ति बक्शी के साथ ही पूर्व सांसद रविंद्र पांडेय, सांसद प्रतिनिधि दिनेश यादव और पूर्व सदर विधायक निर्भय शाहाबादी के नाम रायशुमारी के बाद भेजे गए हैं. गिरिडीह और डुमरी विधानसभा में पीरटांड़ के साथ इसे सटे इलाके में मंडल अध्यक्ष द्वारा भेजे गए नामों में जो सबसे अधिक चर्चित नाम सामने आया है, उसमें पूर्व विधायक निर्भय शाहाबादी सबसे ऊपर है तो दूसरे स्थान पर रविंद्र पांडेय का नाम चर्चा में है.
बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो के नाम की भी चर्चा हो रही है लेकिन ढुल्लू महतो के नाम की रायशुमारी सिर्फ उनके विधानसभा तक ही सीमित है जबकि रविंद्र पांडेय और पूर्व विधायक निर्भय शाहाबादी के नाम की रायशुमारी दो बड़े विधानसभा डुमरी और गिरिडीह तक है. हालांकि प्रबल दावेदारों में से किसी एक नाम पर अंतिम मुहर भाजपा के केंद्रीय चुनाव समिति को लगाना है और केंद्रीय चुनाव समिति इन नामों से हटकर किसी अन्य के नाम का भी एलान कर सबको चौंका सकती है.
इन नामों के सामने आने के बाद अब गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र के नेता और कार्यकर्ताओं में अपने अपने नेताओं को सेकर रस्साकसी तेज हो गई है. लोकसभा क्षेत्र को लेकर जातीय समीकरण और 2019 के चुनावी समीकरण की बात करें तो इसमें नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं में पहली पसंद पूर्व विधायक निर्भय शाहाबादी हैं. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह उनके विधायक के रूप में अपने कार्यकाल में कार्यकर्ता को दिया गया सम्मान है जबकि जातीय समीकरण भी पूर्व विधायक निर्भय शाहाबादी के पक्ष में ही गोलबंद दिखता नजर आ रहा है. पूरे लोकसभा में ओबीसी मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है.