उग्रवाद समस्या की विचारधारा को खत्म करने में प्रबुद्ध वर्ग, सरकार की सामूहिक भागीदारी, न्याय परक और विकास कार्यों को प्रोत्साहन जरूरीः बाबूलाल

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Ranchi: झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के मुताबिक राज्य से उग्रवाद, नक्सलवाद जैसी समस्याओं के निदान में सामूहिक प्रयास जरूरी है. इसमें सरकार के साथ साथ समाज के प्रबुद्ध वर्ग को भी अपना दायित्व निभाना होगा ताकि इससे संबंधित विचारधारा को परास्त किया जा सके. प्रेस क्लब, रांची में रविवार को लेखिका रेणुका तिवारी के उपन्यास अलविदा लाल सलाम के लोकार्पण के मौके पर उन्होंने कहा कि जहां भी विकास कार्यों को पहुंचाने में सिस्टम, सरकार कमजोर पड़ता है, वहां उग्रवाद और अन्य समस्याओं को पनपने को खाद पानी मिलता रहता है. न्याय व्यवस्था को सुलभ करने, विकास कार्यों की गति बढ़ाने से ऐसी समस्याओं का निदान आसान हो जाता है. बाबूलाल ने यह भी कहा कि राजनेता, सिस्टम में बैठे लोग अगर कमीशनखोरी से परहेज करें, ईमानदारी से अपना रोल अदा किया करें तो नक्सल, उग्रवाद जैसी विचारधारा को पनपने का मौका नहीं मिले.. पर ऐसा होना ही कठिन है जिसके चलते ऐसी समस्याओं का पूरी तरह निराकरण इतना सहज भी नहीं है. मौके पर पूर्व पुलिस महानिरीक्षक अरूण सिंह, रांची यूनिवर्सिटी से रिटायर हिन्दी के पूर्व प्रोफेसर अशोक प्रियदर्शी, प्रभात खबर के कार्यकारी संपादक अनुज सिन्हा समेत कई लेखक और गणमान्य लोग भी उपस्थित थे.

पैसा उगाही की मशीन हैं नक्सली

अशोक प्रियदर्शी ने सिमडेगा में अपने दो दशकों के अध्यापन काल के अनुभवों को साझा किया. कहा कि अब भी गांवों में रहने वाले आदिवासी समाज के लोग बेहद सरल, सहज हैं. जहां शासन का अभाव रहता है, नक्सल समस्याओं को वहीं पनपने का मौका मिलता है. प्रथम मूख्यमंत्री के तौर पर बाबूलाल ने जो विकास परक कार्य राज्य में किए थे, उससे बहुत हद तक नक्सल समस्या को रोकने में मदद मिली थी. इसी तरह से और भी काम की जरूरत है. अब जो स्थिति है, उसमें नक्सली केवल अपराधियों का एक गिरोह बनकर पैसा उगाही की एक मशीन बनकर रह गया है.
अनुज सिन्हा ने कहा कि अलविदा लाल सलाम जैसा उपन्यास एक उम्मीद की किरण है. यह बताता है कि किसी भी समाज में हिंसा का कोई स्थान नहीं. नक्सल या अन्य जो भी रास्ते हों, अंततः लोकतंत्र ही जनता के लिए प्रभावी है. सबों को लौटकर इसे ही मजबूत करने को आना होगा. न्याय व्यवस्था, पुलिस महकमे को भी खुद में और बेहतर सुधार की जरूरत है ताकि किसी को भटकाव से रोका जा सके.
रेणुका तिवारी के मुताबिक उनका उपन्यास मुख्यतः इस बात को रेखांकित करता है कि करीब पांच दशकों से देश के अलग अलग हिस्सों में किस तरह से नक्सली संगठन खासकर आदिवासियों को अपने चंगुल में लेते रहे हैं. खून की होली खेलते आये हैं. नस्कलवाड़ी से आरंभ नक्सलवाद अब खुद के लिए ही एक समस्या बन बैठा है. उनके नाम पर कई संगठन बन गये हैं. नक्सलवाद के नाम पर भयादोहन, लेवी वसुली जैसे कार्यों में लगे हैं. अपने नेताओं को धन्ना सेठ बनाने में लगे हैं. नक्सल समस्या की जड़ें व्यवस्था की नाकामियों से भरी पड़ी हैं.

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