जिम्बाब्वे में सूखे से हालात बेकाबू, संयुक्त राष्ट्र ने अन्य देशों से की 43 करोड़ डॉलर की सहायता की अपील

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Zimbabwe Drought News: दुनियाभर में एनवायरनमेंट को लेकर जागरूकता कार्यक्रम किए जा रहे हैं. यह एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर कोई भी व्यक्ति खड़े- खड़े काफी देर तक लेक्चर दे सकता है. लेकिन ग्लोबल वार्मिंग का असर जिन पर जिन पर पड़ता है, वे इसका असल प्रभाव बता सकते हैं. ऐसा ही एक देश है जिम्बाब्वे. वही देश जो क्रिकेट के लिए कभी मशहूर हुआ करता था. अब वह देश अनाज के एक- एक दाने के लिए तरस रहा है. जलवायु चक्र में बदलाव की वजह से वहां पर इस बार नाममात्र की बारिश हुई है, जिसके चलते खेती पूरी तरह बर्बाद हो गई. अनाज न होने की वजह से वहां के लोगों को दो वक्त का भोजन तो छोड़िए, एक वक्त का खाना भी नसीब नहीं हो पा रहा है. यह खाना भी उन्हें अपने दम पर नहीं बल्कि दानदाता देशों की ओर से भेजे गए अनाज के बल पर मिल रहा है.

न्यूज एजेंसी एपी की रिपोर्ट के मुताबिक जिम्बाब्वे का सूखा लगातार गंभीर हो रहा है. राजधानी हरारे के बाहरी इलाके में लोगों की कतारें लगी हुई हैं. वे वहां पका भोजन पाने के लिए इकट्ठा हैं. चार बच्चों की मां लाइवा मुसेंज़ा भी उन्हीं में से एक हैं. वे अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए एक स्थानीय गैर सरकारी संगठन से मिलने वाली सहायता पर निर्भर है. वे कहती हैं कि अपने बच्चों को भूख से बिलखते देख उनसे रहा नहीं जाता. वे चाहती हैं कि उनके बच्चों को खूब भोजन मिले, लेकिन वह कुछ नहीं कर पा रहीं.

रारे में बना यह भोजन वितरण केंद्र सामंथा मुज़ोरोकी ने शुरू किया है. वे अपने कुचेनगेटाना ट्रस्ट की ओर से इस तरह के 5 केंद्र चला रही हैं. इन केंद्रों पर उनके ट्रस्ट के वालंटियर थाली लेकर खड़े लोगों के नाम नोट करता है. इसके बाद भूखे लोग बारी-बारी से आगे बढ़ते हैं, जहां उन्हें मैकरोनी और सोयाबीन दी जाती है.

सामंथा बताती हैं कि करीब 4 महीने पहले उन्हें कैरिबोन के एक फार्म परिसर में काम करने वाले कई माता-पिता ने शिकायत की थी कि जिम्बाब्वे के अधिकांश हिस्सों में फसल खराब होने के कारण बच्चों को भूखा सोना पड़ रहा है. इसके बाद उन्होंने लोगों की मदद के लिए इस तरह के केंद्र शुरू करने का फैसला किया.

वे बताती हैं कि कैरिबोन के अधिकतर लोग खेतों में अंशकालिक काम करके जीविकोपार्जन करते हैं, लेकिन इस साल सूखे के कारण उन्हें खेतों में कोई काम नहीं मिल पाया और न ही अनाज मिला. ऐसे में उन्हें दोनों ओर से मार झेलनी पड़ रही है. अनाज की कमी का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है. भोजन की कमी की वजह से उनका स्कूल जाना छूट रहा है. साथ ही वे कुपोषण के भी शिकार हो रहे हैं.

वे बताती हैं कि उनके प्रत्येक भोजन वितरण केंद्र पर 15 सौ से ज्यादा लोगों को भोजन दिया जा रहा है. यह काम अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं की मदद से चल रहा है. इन केंद्रों को चलाने के लिए उन्हें हर तीन महीने 1200 डॉलर की जरूरत है. लेकिन अब उनके दान में भारी गिरावट आई है और यह 400 डॉलर प्रति त्रैमासिक हो गया है. इसके चलते पहले जहां वे लोगों को दोनों वक्त का भोजन उपलब्ध करवा पा रहे थे, वहीं अब एक वक्त का ही भोजन दे पा रहे हैं. वे आशंका जताती हैं कि अगर दान में ऐसे ही गिरावट आती रही तो उनका संगठन चरमरा सकता है.

रिपोर्ट के मुताबिक ज़िम्बाब्वे दक्षिणी अफ़्रीका के उन देशों में से एक है, जो सूखे के कारण भोजन की कमी का सामना कर रहे हैं. राष्ट्रपति एमर्सन मनांगाग्वा ने पिछले महीने देश में आपदा का ऐलान करते हुए सूखे से निपटने के लिए कम से कम दो अरब डॉलर की जरूरत बताई थी. उन्होंने कहा था कि देश की लगभग आधी आबादी को तुरंत सहायता की ज़रूरत है.

जिम्बाब्वे को संकट से बाहर निकालने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ भी आगे आया है. उसने सूखे से प्रभावित लोगों की मदद के लिए 429.3 मिलियन डॉलर मदद की अपील की है. वहीं यूनिसेफ ने पिछले महीने “पानी और भोजन की कमी से बढ़े जटिल मानवीय संकट के बीच जीवनरक्षक उपाय प्रदान करने के लिए” 84.9 मिलियन डॉलर की तत्काल मदद का आह्वान किया है.

 

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