हिन्दू धार्मिक न्यास परिषद ने एसडीओ से मांगी रघुराम धर्मशाला की भूमि, एसडीओ ने लगायी थी निषेधाज्ञा

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Chakradharpur : चक्रधरपुर नगर परिषद अन्तर्गत राजबाड़ी रोड स्थित वार्ड नं 10 प्लाट नं 124 खसरा नं 33 की जमीन को सरकारी घोषित किये जाने के बाद केडिया बंधुओं पर धारा 144 लागू किये जाने का नोटिस दिया गया था. नोटिस में कहा गया था कि उक्त भूमि पर वे आ जा नहीं सकते और न ही निर्माण करा सकते हैं. अब इस भूमि को हिन्दू धार्मिक न्यास परिषद ने एसडीओ को पत्र लिख कर मांगा है. पत्र में कहा गया कि बिहार हिन्दू धार्मिक न्यास अधिनियम 1950 की धारा 2 (1) के अनुसार राज्य में अवस्थित सभी धर्मशाला धार्मिक न्यास है. धार्मिक न्यास द्वारा धारित भूमि अधिनियम की धारा 2 (पी) के अधीन न्यास सम्पत्ति है. जिसका साधारण अधीक्षण की शक्ति अधिनियम की धारा 28 (1) के अधीन झारखंड राज्य हिन्दू धार्मिक न्यास बोर्ड में निहित है. अतएव अनुरोध है कि उक्त भूमि को अवैध कब्जाधारकों से मुक्त करा कर बोर्ड को सूचित किया जाये. ताकि बोर्ड द्वारा न्यास समिति का गठन कर उसका सुचारू प्रबंधन समिति द्वारा सुनिश्चित कराया जा सके.

बताते चलें कि यहां हो रहे अवैध निर्माण की शिकायत के बाद कई मौके दिये जाने पर भी आरोपी केडिया बंधु कागजात प्रस्तुत नहीं कर सके थे. जबकि एसडीओ के आदेश पर अंचलाधिकारी द्वारा दी गई रिपोर्ट में भी उक्त जमीन को सरकारी बताया गया. इसके बाद शिकायतकर्ता अमित शर्मा व केडिया बंधुओं की उपस्थिति में एसडीओ रीना हंसदा ने उक्त जमीन को सरकारी घोषित करते हुए इसकी पूरी रिपोर्ट उपायुक्त को भेज कर अतिक्रमणवाद का मुकदमा दायर कर अवैध रूप से निर्मित ढांचे को तोड़ने की बात कही थी.

बताते चलें कि इस स्थान पर स्थित रघुराम धर्मशाला और सार्वजनिक कुएं को ध्वस्त कर मार्केट काम्प्लेक्स का निर्माण कराया गया है. यह सम्पत्ति अनाबाद बिहार सरकार सर्वसाधारण गैरमजरुआ आम के नाम पर दर्ज है.

धर्मशाला के संबंध में क्या कहते हैं जानकार

पोड़ाहाट राजपरिवार के द्वारा जमीन धर्मशाला के लिए दान में दी गयी थी और केडिया परिवार को इसके रख रखाव की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. 1948 में यह भूखंड बिहार सरकार के अधीन आ गया और इस जमीन का खाता अंचल कार्यालय में बिहार सरकार अनाबाद सर्वसाधारण के नाम से खोला गया और जमीन की प्रकृति गैरमजरुआ आम निर्धारित की गई थी.

क्या होता है धर्मशाला का मामला

पुराने जमाने में राहगीरों के ठहरने के लिए भवन का निर्माण राजाओं और जमींदारों द्वारा कराया जाता था, जो पूर्ण रूप से निःशुल्क होता था, परन्तु राहगीर अपनी इच्छा से धर्मशाला को दान में रुपए दे सकते थे. आज के आधुनिक युग में भी धर्मशाला की प्रासंगिकता बरकरार है. गरीब और मध्यम वर्गीय लोग विवाह आदि समारोह धर्मशाला में ही आयोजित कराते हैं. यह चक्रधरपुर का दुर्भाग्य है कि यहां स्थित धर्मशालाएं अब पूंजीवादी लोलुपता की भेंट चढ़ रही हैं.

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