चुनावी बॉन्ड को सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘असंवैधानिक’, सूचना के अधिकार का उल्लंघन भी बताया

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनावी बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक क़रार दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”चुनावी बॉन्ड की जानकारी गुप्त रखना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.” मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ”स्टेट बैंक ऑफ इंडिया 12 अप्रैल 2019 से आज तक ख़रीदे गए चुनावी बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को मुहैया करवाए.”

ये जानकारी तीन हफ़्ते के भीतर देनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से 13 मार्च 2024 तक ये जानकारी वेबसाइट पर छापने के लिए कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन चुनावी बॉन्ड की वैधता 15 दिन के भीतर की है और वो राजनीतिक दलों की ओर से नहीं लिए गए हैं, वो बॉन्ड ख़रीदने वाले को लौटा दिए जाएं. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पार्दीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने बीते साल नवंबर में फ़ैसला सुरक्षित रखा था.

बता दें कि इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया है.यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीक़े से दान कर सकता है.

फैसले पर प्रशांत भूषण ने कहा

इस फ़ैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मीडिया से कहा, ”सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड मामले में एक महत्वपूर्ण फ़ैसला सुनाया जिसका हमारे लोकतंत्र पर लंबा असर होगा. कोर्ट ने बॉन्ड स्कीम को ख़ारिज कर दिया है.” प्रशांत भूषण इस मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट में पेश भी हुए थे.

प्रशांत भूषण बोले, ”इस स्कीम में ये नहीं पता लगता था कि किसने कितने रुपए के बॉन्ड ख़रीदे और किसे दिए. सर्वोच्च न्यायालय ने इसे सूचना के अधिकार का उल्लंघन माना है. इसे लेकर जो संशोधन किया गया था, जिसके तहत कोई कंपनी, किसी भी राजनीतिक दल को कितना भी पैसा दे सकती हैं, कोर्ट ने वो भी रद्द कर दिया है.” भूषण ने बताया, ”कोर्ट ने कहा कि ये चुनावी लोकतंत्र के ख़िलाफ़ है, क्योंकि ये बड़ी कंपनियों को लेवल प्लेइंग फ़ील्ड ख़त्म करने का मौक़ा देती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो भी पैसा इस स्कीम के तहत जमा किया गया है, उसकी जानकारी भारतीय स्टेट बैंक चुनाव आयोग को दे और आयोग की तरफ़ से इसकी जानकारी आम लोगों को वेबसाइट पर मुहैया कराई जाए.”

क्या है चुनावी बॉन्ड

ये मामला सुप्रीम कोर्ट में आठ साल से ज़्यादा वक़्त से लंबित था और इस पर सभी निगाहें टिकी हुई थीं. इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया है. यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीक़े से दान कर सकता है.

भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी. इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को क़ानूनन लागू कर दिया था. इस योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक राजनीतिक दलों को धन देने के लिए बॉन्ड जारी कर सकता है.

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