मां काली की भक्ति की शक्तिः मां के चरणों में दी अग्नि परीक्षा, शरीर छेदवाया, अंगारों पर चल कर दिखाया

Chakradharpur : पश्चिमी सिंहभूम जिले के बंदगांव प्रखंड के कराईकेला पंचायत के बाउरीसाई गांव में बुधवार को मां काली की पूजा के अवसर पर बाउरीसाई काली मंदिर परिसर में भक्तों की अग्नि परीक्षा एवं रंजनी फोड़ा कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस अवसर पर भक्तों ने गाजे बाजे के साथ बाउरीसाई तालाब में स्नान कर पूजा अर्चना की. इस दौरान भक्त मां काली की जय-जयकार करते हुए काली मंदिर बाजा गाजा के साथ पहुंचे. मंदिर परिसर पहुंच कर भक्तों तथा श्रद्धालुओं ने पूजा अर्चना की. पुजारी सत्यवान महापात्र के द्वारा विधिविधान के साथ पूजा अर्चना की गयी. पूजा के बाद 65 भक्तों ने अंगारों पर नंगे पांव चल कर अपनी भक्ति की शक्ति दिखायी. अग्नि परिक्षा के बाद परासर महतो के नेतृत्व में 6 भक्तों ने अपनी बांह पर लोहे के नुकीले कील का छेदन कर काइस घांस को आर पार किया. जिसके बाद बांह में छेदे गये भक्तों को श्रद्धालुओं द्वारा काइस घांस के सहारे खींचते हुए नाचते गाते देर शाम तक काली मंदिर पहुंचे. इस दौरान भक्तों ने गाजे बाजे के साथ बाउरीसाई ऊपर टोला से मंदिर परिसर पहुंच कर पूजा अर्चना की. इस मौके पर समाजसेवी डॉ विजय सिंह गागराई भी काली मंदिर पहुंचे एवं मां काली को प्रणाम कर क्षेत्र में सुख शांति की कामना की. कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप से ग्राम मुंडा परमेश्वर महतो, अध्यक्ष अभिलेख महतो, उपाध्यक्ष मानतानु महतो,कोषाध्यक्ष कुलदीप महतो, सचिव बापटू प्रामाणिक, दिपक महतो, , रतन महतो, छोटेलाल महतो, अजय महतो, निलकंठ कटीहार, ताराचन्द महतो, तुलषी महतो, बीजू प्रामाणिक, बिंजय महतो समेत ग्रामीणों का सराहनिय योगदान रहा. कार्यक्रम के अवसर पर ओटार, लाडूपौदा, हुड़ागदा, भालूपानी, नकटी,  करायकेला ,चक्रधरपुर ,सोनुवा, चाईबासा ,मनोहरपुर ,गोइलकेरा, राउलकेला ,जमशेदपुर ,गम्हरिया  सरायकेला ,खरसावां समेत विभिन्न जगहों से हजारों की संख्या में ग्रामीण उपस्थित होकर मां काली की पूजा की.

ग्राम मुण्डा परमेष्वर महतो बताते हैं कि सैकड़ों वर्ष पुरानी परम्परा अब भी गांव में झलकती है. गांव गांव में पूजा के मौके पर श्रद्धालु जलते  आग के अंगारों पर नंगे पांव चलते हैं.  लोहे की कील से बांह में आर पार करना आदी ऐसे कई दिल को दहलाने वाले कारनामे प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिलता है. उन्होंने कहा कि 1850 से ऐसी परम्परा कराईकेला के बाउरीसाई गांव में चलती आ रही है.

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