New Delhi: 2019 में अनुच्छेद-370 को हटाना क़ानूनी था या नहीं, इस पर आज सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की पीठ अपना फ़ैसला सुनाएगी. सुप्रीम कोर्ट में चीफ़ जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच के फ़ैसला सुनाने से पहले घाटी में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गयी है.
5 अगस्त 2019 को धारा 370 हटाए जाने के तुरंत बाद इसे चुनौती देते हुए कई याचिकाएँ दायर की गईं. अगस्त 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को पाँच जजों की बेंच के पास भेज दिया था. अदालत ने इस साल अगस्त में इस मामले की अंतिम दलीलें सुननी शुरू कीं.
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से पहले उमर अब्दुल्ला बोले
सुप्रीम कोर्ट में आज फैसला आने से पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि उन्हें इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार था और उन्हें इंसाफ़ की उम्मीद है. उन्होंने कहा- “ जब हम 2019 में सुप्रीम कोर्ट में गए थे तब न्याय की उम्मीद लेकर गए थे, आज भी हमारे जज्बात वही हैं. हमें इस दिन का बेसब्री से इंतजार था. सोमवार (11 दिसंबर) को जज अपना फैसला सुनाएंगे, हमें इंसाफ की उम्मीद है.””
“सुप्रीम कोर्ट को फैसला देना है, फैसला देने दीजिए.”
याचिकाकर्ताओं के तर्क और मांगें
याचिकाकर्ताओं ने अदालत से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बाँटने को रद्द करने की मांग की है. याचिकाकर्ताओं के मुताबिक़ अनुच्छेद 370 एक स्थायी प्रावधान था. चूँकि इसमें किसी भी बदलाव के लिए राज्य की संविधान सभा के इजाजत की ज़रूरत होती थी, जिसे 1956 में भंग कर दिया गया था.
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 370 हटाना उस विलय पत्र के विरुद्ध था, जिसके ज़रिए जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बना.याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह लोगों की इच्छा के ख़िलाफ़ जाने के लिए किया गया एक राजनीतिक कृत्य था.उनकी दलील है कि संविधान सभा को विधानसभा से स्थानापन्न नहीं किया जा सकता क्योंकि वे अलग-अलग काम करती हैं.
दायर हुई थी 23 याचिकाएं
इस मामले में कुल 23 याचिकाएं दायर की गई हैं. इस मामले के याचिकाकर्ताओं में नागरिक समाज संगठन, वकील, राजनेता, पत्रकार और कार्यकर्ता शामिल हैं. इनमें से कुछ में जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेंस, पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और सांसद मोहम्मद अकबर लोन और जम्मू और कश्मीर के पूर्व वार्ताकार राधा कुमार शामिल हैं.
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