डॉ बीआर षड़ंगी बनेंगे झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने की अनुशंसा

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Ranchi: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा की सेवानिवृत्ति के उपरांत उड़ीसा हाई कोर्ट के सीनियर जस्टिस डॉक्टर बीआर षड़ंगी ( Dr. Bidyut Ranjan Sarangi)  को झारखंड हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाने की अनुशंसा की है. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने डॉक्टर जस्टिस बीआर सारंगी के सीनियरिटी को देखते हुए उनके नाम की अनुशंसा केंद्र सरकार से की है. जस्टिस डॉक्टर बीआर सारंगी 20 जून 2013 को उड़ीसा हाई कोर्ट के जस्टिस बने थे. इससे पहले उन्होंनें करीब 27 वर्षों तक उड़ीसा हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने प्रेक्टिस किया था. बता दे की झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा आज सेवानिवृत हो गए. 29 दिसंबर से झारखंड हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस के रूप में जस्टिस एस चंद्रशेखर को चीफ जस्टिस कार्यालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

कौन हैं बिद्युत रंजन षड़ंगी

डॉ. बी.आर. सारंगी का जन्म 20 जुलाई 1962 को ओड़िशा के नयागढ़ जिले के पेंटीखारिसन गांव में एक सम्मानित “सारंगी परिवार” में हुआ था. उनके पिता स्व. बंचनिधि सारंगी उड़ीसा वित्त सेवा कैडर के वरिष्ठ अधिकारी थे. उनकी माता स्व. शैलबाला सारंगी गृहिणी थी. बिद्युत अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं. और उनका विवाह निरुपमा सारंगी से हुआ. जो बाद में उड़ीसा उच्च न्यायालय की वकील बनीं.

उनकी दो बेटियां डॉ. देबार्चिता और देबस्मिता हैं. उनमें डॉ. देबार्चिता इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंस, एसयूएम अस्पताल, भुवनेश्वर में में सहायक प्रोफेसर है और देबस्मिता ने कटक के एम.एस कॉलेज से LL.B में गोल्ड मेडलिस्ट रही हैं.

बिद्युत सारंगी ने भुवनेश्वर के बी.जे.बी. कॉलेज से कॉमर्स से ग्रेजुएशन किया इसके बाद उन्होंने कटक के एम.एस कॉलेज से LL.B और LL.M की उपाधी ली उत्कल यूनिवर्सिटी, भुवनेश्वर से संबंधित था. इसके बाद उन्होंने संबलपुर विश्वविद्यालय से कानून में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों की वजह से उन्हें कई पुरस्कार प्राप्त किये.

1985 में उड़ीसा हाईकोर्ट से शुरू की प्रैक्टिस

दिसंबर 1985 में उन्होंने उड़ीसा हाइकोर्ट से प्रैक्टिस शुरू की. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी प्रैक्टिस किया. एक वकील के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन और पेशेवर नैतिकता के उच्च मानक के लिए, वर्ष 2002 के लिए तत्कालीन माननीय न्यायाधीश पी.के. द्वारा उन्हें गोल्ड मेडल के साथ “हरिचरण मुखर्जी मेमोरियल अवार्ड” से सम्मानित किया था. उन्होंने बार में 27 वर्षों तक एक वकील के तौर पर सफल प्रैक्टिस की.

 

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