बीजेपी को बैकफुट पर ना ला दें ये 5 एसटी सीटें, जानिये क्या है समीकरण….

Kumar Saurav

Ranchi : लोकसभा चुनाव चुनाव सिर पर है. एक तरफ विपक्ष अपना गठबंधन बनाने और उसे मजबूत करने में जुटा हैं, वहीं भाजपा 300 सीटों के आंकड़े को पार करने की रणनीति पर काम कर रही है. देश में राम नाम की धूम मची है. 22 जनवरी को अयोध्या में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही बीजेपी का एक एजेंडा पूरा हो जायेगा. निश्चित ही इसका राजनीतिक लाभ उसे मिलने जा रहा है, पर इससे इतर झारखंड में कमल कैसे खिले इसे लेकर पार्टी के आला नेता हलकान हैं.

लोहरदगा, खूंटी, राजमहल, दुमका और चाईबासा को लेकर उड़ी नींद

झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों में इस वक्त 12 पर भाजपा और उसके सहयोगी दल का कब्जा है. भाजपा इस संख्या को 14 पर ले जाना चाहती है और रणनीति पर काम भी कर रही है, पर उसकी राह में झारखंड की 5 सीटें रोड़ा अटकाये खड़ी हैं. ये सभी पांच सीटें ऐसी हैं जिनमें भाजपा की पकड़ कमजोर रही है. ये सीटें एसटी के लिए रिर्जव भी हैं. लोहरदगा, खूंटी, राजमहल, दुमका और चाईबासा ये ऐसी सीटें हैं, जिसने भाजपा की नींद उड़ा रखी है. हालांकि इनमें से तीन खूंटी, लोहरदगा और दुमका पर फिलहाल भाजपा ने ही जीत दर्ज की है, पर इन सीटों पर जीत मार्जिन कुछ ही हजार रहा है. ऐसा माना जा रहा है कि आदिवासी वोटरों के पोलराइज होने के कारण भाजपा के लिए जीत डगर काफी कठिन है. ऐसी चर्चा भी है कि खूंटी से सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा भी उस सीट से चुनावी समर में उतरना नहीं चाह रहे हैं. वह इस कोशिश में है कि उन्हें सिंहभूम सीट से उतारा जाये. लेकिन राजनीति में इच्छा और कोशिश सब कुछ टाइमिंग और हालात पर निर्भर करता है. उनकी यह इच्छा क्या रंग लाती है यह आनेवाले कुछ समय में साफ हो जायेगा. वहीं बात करें लोहरदगा सीट की तो यहां भी जीत का मार्जिन 10 हजार वाटों का ही रहा है. जहां मोदी लहर पर सवार अन्य सीटों पर जीत का मार्जिन 2-4 लाख के बीच रहा वहां इन दो सीटों पर जीत का मार्जिन कुछ औऱ ही कहानी कह रहा है.

सिंहभूम में गीता या अर्जुन

सिंहभूम सीट इस वक्त कांग्रेस के पास है. वहां से पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा सांसद हैं. पिछले कुछ समय से उनके बीजेपी में शामिल होने की चर्चा चल रही है, हालांकि गीता कोड़ा ने इन खबरों का खंडन किया है और कहा है कि वह कांग्रेस में ही रहेंगी. गीता कोड़ा ने पिछली बार 72 हजार वाटों से जीत हासिल की थी. राममहल सीट इस वक्त झामुमो के पास है. विजय कुमार हांसदा ने करीब 1 लाख वोटों से जीत हासिल की थी. वहीं दुमका सीट पिछली बार बीजेपी के खाते में गयी थी. बीजेपी से सुनील सोरेन ने 47 हजार वोटों से जीत हासिल की थी. पर तब की परिस्थियां कुछ और थीं. आज हेमंत की अगुवाई में झामुमो के हौसले बुलंद हैं.

अब तक टीम नहीं बना पाये बाबूलाल

भाजपा ने अपनी कमजोर कड़ी को भांप कर अपने पुराने सिपहसालार बाबूलाल मरांडी को कमान सौंपी है. बाबूलाल मरांडी अच्छे संगठनकर्ता हैं, पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं और पार्टी का एक सौम्य चेहरा हैं. उनकी इन्हीं खूबियों के कारण उन्हें पार्टी में वापस लाकर प्रदेश की कमान सौंपी गयी है. 15 जुलाई 23 से वह औपचारिक रूप से काम संभाल चुके हैं पर छह महीने बीत जाने के बाद भी अब तक अपनी टीम नहीं बना पाये हैं. उन्होंने अभी तक कार्यसमिति की घोषणा नहीं की है. पुरानी कमेटी ही कार्यरत है. ऐसे में पार्टी कार्यकर्ताओं में असमंजस की स्थिति. जो पुराने लोग काम कर रहे हैं उन्हें यह डर है कि वह कभी भी बदले जा सकते हैं और जो नये लोग हैं उन्हें इस बात का भरोसा नहीं है कि उन्हें टीम में जगह मिलेगी.

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