Akshay Kumar Jha
Ranchi: झारखंड में केंद्रीय जांच एजेंसियों की छापेमारी की शुरुआत हुए अब करीब दो साल पूरा होने को है. मनरेगा, खनन, हेमंत सोरेन लीज प्रकरण और रांची जमीन घोटाला होते हुए ईडी अब शराब कारोबारी योगेंद्र तिवारी पर अपना शिकंजा कस चुका है. केंद्रीय जांच एजेंसियों की हर कार्रवाई के बाद जेएमएम और कांग्रेस की तरफ से यह आरोप लगाया जाता था कि सारी कार्रवाई केंद्र के इशारे पर हो रही है. लेकिन योगेंद्र तिवारी पर ईडी की पकड़ बनते ही जेएमएम सीधे तौर पर कह रहा है कि योगेंद्र तिवारी के संबंध मौजूदा बीजेपी के एक दिग्गज नेता के साथ थे. लेकिन ईडी उस ताकतवर नेता के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहा है.
जेएमएम की तरफ से कभी प्रेस वार्ता कर कोई तस्वीर रिलीज की जाती है तो कभी सीधे तौर पर आरोप लगाया जा रहा है. वहीं बीजेपी भी अपने बयानों से जेएमएम पर योगेंद्र तिवारी को लेकर हमलावर है. जेएमएम के आरोपों को सीधे तौर पर खारिज कर देना राजनीतिक स्टंट हो सकता है. लेकिन सच्चाई नहीं. वहीं जेएमएम के आरोपों को सीधे तौर पर मान लेना भी गलत है. इसी पूरी कहानी से पर्दा उठाने की कोशिश न्यूज विंग कर रहा है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट.
यह उन दिनों की बात है जब योगेंद्र अपने पांव पसार रहा था
योगेंद्र तिवारी व्यवहारिक तौर पर जमीन से कितना जुड़ा हुआ है. यह कह पाना शायद मुश्किल होगा. लेकिन जमीन के कारोबार से योगेंद्र सीधे तौर पर जुड़ा हुआ था. संथाल में ऐसा शायद ही कोई जिला हो जहां योगेंद्र तिवारी ने जमीन का कारोबार ना किया हो. लेकिन ज्यादा फोकस देवघर और दुमका पर था. 2003-2004 के बाद एक समय आया जब देवघर और दुमका में बहुत बड़े पैमाने पर जमीनों की खरीद-बिक्री हुई. एक समय कहा जाने लगा कि देवघर की आधी जमीन पर योगेंद्र तिवारी का कब्जा हो गया है.
योगेंद्र तिवारी ने बड़ी ही चालाकी से जमीन कारोबार को ऐसे फैलाया कि देवघर और दुमका समेत तमाम संथाल परगना में जितनी भी विवादित जमीन थी, उसे योगेंद्र तिवारी ने अपने परिजनों या जानने वालों के नाम खरीदा और वहीं जितनी जमीन बिना किसी विवाद की थी उसे खुद अपने नाम पर खरीदा. जिनपर योगेंद्र से काफी नजदीक होने का आरोप जेएमएम लगा रहा है, वो उस वक्त उनके साथ थे. बाद में यही कारोबार एक-दूसरे से दूर होने का कारण बना.
2009-2010 में ही योगेंद्र और जिनपर नजदीक होने का आरोप लग रहा है वो अलग हो गए थे. दरअसल संथाल के एक शानदार शहर में एक बड़ी कंपनी का शोरूम खोला गया. शोरुम ऑटोमोबाइल सेक्टर की थी. इसमें योगेंद्र तिवारी और जिनपर आरोप लग रहे हैं, ने मिलकर कंपनी बनायी और शोरुम खोला. बाद में योगेंद्र तिवारी ने बड़ी ही चालाकी से इस कंपनी को अपने बड़े भाई के नाम पर करवा लिया. इसी को लेकर विवाद शुरू हुआ.
दारू के होलसेल के काम में भी योगेंद्र तिवारी और नजदीक रहने वाले आरोपी पार्टनर थे. शोरुम के विवाद के बाद आरोपी नजदीकियों ने शराब के होलसेल के काम से अपने आप को अलग कर लिया. यह बात 2009 की है. विवाद के बाद शराब होलशेल के लिए कॉर्पोरेशन का निर्माण हुआ. कहा जाता है कि ऐसा आरोपियों के इशारे पर हुआ. मकसद योगेंद्र तिवारी को डैमेज करने का था. उस वक्त योगेंद्र तिवारी के पास शराब होलशेल का काम 13 जिलों में था.
जमीन प्लॉट को लेकर भी विवाद
शोरुम विवाद के बाद दुमका में दो जमीन प्लॉट को लेकर भी आरोपियों और योगेंद्र तिवारी के बीच विवाद शुरू हो गया. दुमका में दो बड़े जमीन के प्लॉट की खरीदारी हुई. इनमें से एक जमीन विवादित थी. जिसे योगेंद्र तिवारी ने बड़ी चालाकी से नजदीक रहने वाले आरोपियों के नाम करा दिया. वहीं जिस जमीन की रजिस्ट्री हो सकती थी उसे अपने नाम से ही खरीद लिया. ऐसा होने के बाद विवाद और बढ़ गया. और हमेशा-हमेशा के लिए नजदीकी रहने वाले आरोपी और योगेंद्र अलग हो गए.
फूल वाले पार्टी का एक और पूर्व विधायक से भी गहरा नाता
2014 के करीब बीजेपी के एक और दिग्गज नेता और पूर्व विधायक ने योगेंद्र तिवारी के साथ काम शुरू किया. बताया जाता है कि बंगाल से लेकर संथाल तक इस नेता के साथ योगेंद्र तिवारी के साथ खूब बनी. दोनों ने मिलकर ब्लैक मनी और व्हाइट किया और शराब कारोबार में लगाया. ईडी ने एक बार उनके आवास पर भी दबिश दी है. बताया जा रहा है कि आगे भी इनपर खतरे के बादल मंडरा सकते हैं.
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