जैन आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने ली समाधि, तीन दिनों के उपवास के बाद किया शरीर त्याग, पीएम मोदी ने दी श्रद्धांजलि

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Desk: दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज महाराज ने शनिवार रात करीब 2:30 बजे ब्रह्मलीन हो गए. पूर्ण जागरूकता की अवस्था में उन्होंने आचार्य का पद त्याग दिया और 3 दिनों तक समाधि मरण की प्रक्रिया को शुरू कर पूर्ण रूप से अन्न-जल का त्याग कर दिया था और अखंड मौन व्रत ले लिया था. रविवार की शाम 18 फरवरी 2024 को जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज पंचतत्व में विलीन हो गये. अंतिम संस्कार के पहले विद्यासागर महाराज के पार्थिव शरीर को पालकी में बैठकर परिक्रमा कराई गई. अंतिम संस्कार में चंदन लकड़ी, सूखे नारियल का टुकड़ा और शुद्ध घी से किया गया. इस दौरान कई गणमान्य, राजनेता व अलग-अलग वर्ग और संप्रदाय के लोग मौजूद थे.

विद्यासागर जी महाराज का जन्म राजनांदगांव जिले (छत्तीसगढ़) डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में उन्होंने अंतिम सांस ली. उनका जन्म कर्नाटक के सदलगा गांव में 10 अक्टूबर 1946 को शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था.

आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त किया है, उन्होंने एक्स कर लिखा- “मुझे वर्षों तक उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का सम्मान मिला, मैं पिछले साल के अंत में छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में चंद्रगिरि जैन मंदिर की अपनी यात्रा को कभी नहीं भूल सकता, उस समय, मैंने आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी के साथ समय बिताया था.

कर्नाटक में हुआ जन्म

आचार्य विद्यासागर महराज का जन्म कर्नाटक के बेलगांव के सदलगा गांव में  शरद पूर्णिमा के दिन 10 अक्टूबर 1946 में को हुआ था. आचार्य विद्यासागर महराज के तीन भाई और दो बहन स्वर्णा और सुवर्णा ने भी उनसे ही ब्रह्मचर्य लिया था. आचार्य विद्यासागर महराज अब तक 500 से ज्यादा दिक्षा दे चुके हैं. हाल ही में 11 फरवरी को आचार्य विद्यासागर महराज को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में उन्हें ब्रह्मांड के देवता के रूप में सम्मानित किया गया.

राजस्थान में ली दीक्षा, ज्ञानसागर जी ने दिया आचार्य पद

आचार्य शांतिसागर के शिष्य आचार्य ज्ञानसागर ने विद्यासागर जी महाराज के 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर में दीक्षा दी थी. उनके तप और त्याग को देखते हुए 22 नवम्बर 1972 को आचार्य ज्ञानसागर जी ने विद्यासागर जी को आचार्य पद दिया था, उस वक्त उनकी उम्र महज 26 वर्ष थी.
उन्होंने शुरुआत से ही कठिन तप में खुद को लगा दिया. उन्होंने दूध, दही, हरी सब्जियां और सूखे मेवों का अपने संन्यास के साथ ही त्याग कर दिया था। संन्यास के बाद उन्होंने कभी ये चीजें ग्रहण नहीं कीं। पानी भी दिन में सिर्फ एक बार अपनी अंजुलि से भर कर पीते थे. बार-बार पानी नहीं पीते थे. वे बहुत ही सीमित मात्रा में सादी दाल और रोटी खाने में लेते थे. उन्होंने पैदल ही पूरे देश में भ्रमण किया.

कौन हैं अगला आचार्य?

ठीक इसी तरह आचार्य विद्यासागर महाराज ने भी तीन पहले ही अपने आचार्य पद का त्याग किया और अपना आचार्य पद उनके पहले मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री समयसागर को सौंप दिया. बताया जा रहा है कि 6 फरवरी को ही उन्होंने मुनि समयसागर और मुनि योगसागर को एकांत में बुलाकर अपनी जिम्मेदारियां उन्हें सौंप दी थी. बता दें कि ये दोनों मुनि समयसागर और योगसागर उनके ग्रहस्थ जीवन के सगे भाई हैं.

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