Bengaluru: सूर्य के अध्ययन के लिए अतंरिक्ष में भेजा गया भारत का पहला सौर मिशन ‘आदित्य-एल1’ आज (शनिवार) शाम चार बजे अपनी निर्धारित कक्षा में पहुंच जाएगा. इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कुछ दिन पहले एएनआई से कहा था कि आदित्य-एल1, 6 जनवरी को अपने पड़ाव एल1 बिंदु पर पहुंचेगा. हम उसे वहां पहुंचाने के लिए अंतिम प्रयास करने जा रहे हैं. इसे चार महीने पहले 2 सितंबर, 2023 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारतीय समय के अनुसार सुबह 11.50 बजे लॉन्च किया गया था.
आदित्य-एल1 जिस लैंगरैंज प्वाइंट (एल1) तक जहां पहुंचने वाला है, उसकी दूरी पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर है. लैंगरैंज प्वाइंट अंतरिक्ष में एक ऐसी जगह है, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित होता है. यहां एक किस्म का न्यूट्रल प्वाइंट विकसित हो जाता है, जहां अंतरिक्ष यान के ईंधन की सबसे कम खपत होती है.यह दूरी पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी की चार गुना है, लेकिन सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी का केवल 1 प्रतिशत ही है. पृथ्वी से सूर्य की दूरी 15.1 करोड़ किलोमीटर है. इस जगह का नाम फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफ़ लुईस लैगरेंज के नाम पर रखा गया है जिन्होंने इस बिंदु के बारे में 18वीं सदी में खोज की थी.
पीटीआई ने इसरो प्रमुख एस सोमनाथ के हवाले से बताया था कि एक बार यह मिशन जब एल1 बिंदु पर पहुंच जाएगा, तो यह इस बिंदु के चारों ओर घूमेगा और L1 पर अटक जाएगा.
अंतरिक्ष में स्थापित भारत की पहली वेधशाला
यह अंतरिक्ष में स्थापित भारत की पहली वेधशाला है. यह पृथ्वी के सबसे नज़दीकी तारे यानी सूर्य पर नज़र रखेगा और सोलर विंड जैसे अंतरिक्ष के मौसम की विशेषताओं का अध्ययन करेगा. इसरो के अधिकारियों के अनुसार, एल1 बिंदु में किसी सैटेलाइट के होने का एक लाभ यह भी है कि सूर्य को बिना किसी ग्रहण के लगातार देखा जा सकता है.
यह सैटेलाइट सूर्य के सबसे बाहरी सतह फ़ोटोस्फ़ेयर और क्रोमोस्फ़ेयर का अध्ययन करेगा. यह इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और पार्टिकल फ़ील्ड डिटेक्टरों के माध्यम से ऊर्जा और अंतरिक्ष की हलचलों पर नज़र रखेगा. वैसे सूर्य का अध्ययन करने वाला यह पहला मिशन नहीं है. इससे पहले अमेरिका की नासा, रूस और यूरोप की स्पेस एजेंसी भी अपने सौर मिशन भेज चुके हैं.
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