Ranchi : हरमू नदी की दुर्दशा के पीछे कई तरह के गलत निर्णय लिये गये. जीर्णोद्धार व संरक्षण की योजना तैयार करते हुए कई खामियां रह गयीं, जिसे अधिकारियों ने नजरअंदाज किया. शहरी क्षेत्र का ही डीपीआर बन पाया, ग्रामीण क्षेत्र छूट गया. बार-बार संशोधन की वजह से योजना की लागत बढ़ कर 101 करोड़ तक पहुंच गयी. अपात्र व अनुभवहीन संवेदक का भी चयन किया गया था, इस वजह से योजना भी फेल हुई. सुधार कार्यों के लिए आइआइटी मुंबई की भी सलाह नहीं मानी गयी और जैसे-तैसे योजना पूरी की गयी. इधर, सीएजी ने अपनी जांच में एक और बात का खुलासा किया है. एजी ने यह भी कहा कि परियोजना में लागत वसूली की भी कोई योजना नहीं थी. परियोजना लागत का 30 प्रतिशत के साथ ही परियोजना एवं लागत अनुश्रवण की क्षमता वहन करने की कोई योजना भी नहीं थी. इस वजह से आगे मेंटेनेंस का काम भी नहीं हो सका. एजी ने इस पर नगर विकास विभाग से सवाल किया था. इस पर विभाग का कहना था कि रांची की जल मल निकासी को दायरे में रख कर ही रांची नगर निगम द्वारा हरमू नदी जीर्णोद्धार कार्यक्रम शुरू हुआ था. जबकि जांच में यह पता चला कि रांची नगर निगम ने उस वक्त पूरे शहर के लिए कोई जल मल निकासी की योजना तैयार नहीं की थी. ऐसे में विभागों के बीच आपसी तालमेल की कमी भी स्पष्ट नजर आयी. अब झारखंड विधानसभा की उप समिति व झारखंड हाइकोर्ट के द्वारा दिये गये जांच के आदेश के बाद हड़कंप मचा हुआ है. कई अधिकारयों के फंसने की संभावना जतायी जा रही है.
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