सुप्रीम कोर्ट ने बैंक प्रबंधक की सोने की पुनः मूल्यांकन प्रक्रिया पर उठाए सवाल
नई दिल्ली, 11 जून:
सुप्रीम कोर्ट ने पटना के “मोती झील” मामले में उस बैंक प्रबंधक की कार्रवाइयों पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसने ग्राहक द्वारा गिरवी रखे गए 25 तोले सोने को नकली बताते हुए उन पर एफआईआर दर्ज करवा दी। मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
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गिरवी रखकर ऋण लिया
– एक प्रतिष्ठित व्यापारी ने 2020 में 25 तोला सोना गिरवी रखकर 8 लाख रुपये का व्यवसायिक ऋण लिया।
– दो साल बाद चूंकि भुगतान में देरी हुई, बैंक ने ग्राहक को एनपीए (गैर-प्रदर्शन संपत्ति) घोषित कर दिया। -
पुनः मूल्यांकन और एफआईआर
– ग्राहक ने बकाया ब्याज-शुल्क सहित लगभग 8.1 लाख रुपये जमा कर अपने सोने की रिहाई का आवेदन दिया।
– बैंक ने नीलामी प्रक्रिया अपनाए बिना सोना एक नए वैल्यूअर के पास पुनः मूल्यांकन के लिए भेजा।
– पुनः मूल्यांकन में सोना “नकली” घोषित होते ही बैंक ने ग्राहक के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज करवा दिया। -
सुप्रीम कोर्ट का संज्ञान
– कोर्ट ने पूछा कि जब पूरा भुगतान हो चुका था, तब सोने की फिर से वैल्यूएशन की क्या आवश्यकता थी?
– यह भी प्रश्न उठाया कि पहले वैल्यूअर के खिलाफ क्यों कोई कार्रवाई नहीं हुई, जबकि उसने गिरवी के समय उचित रिपोर्ट दी थी।
– बैंक ने नीलामी का निर्धारित फ़ॉर्मैट क्यों नहीं अपनाया और ₹1,500 वैल्यूएशन शुल्क ग्राहक के खाते से क्यों काट लिया? -
आगे की कार्यवाही
– सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट द्वारा ग्राहक की एफआईआर को “काउंटर एफआईआर” कह कर खारिज करने से इन्कार किया और मामले की इन्क्वायरी आगे बढ़ाने का आदेश दिया।
– कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बैंक-ग्राहक संबंधों में पारदर्शिता व निष्पक्ष प्रक्रिया जरूरी है, अन्यथा बैंकिंग सिस्टम पर से जनता का विश्वास उठ सकता है।
इस फैसले से स्पष्ट हो गया कि गिरवी रखे गए सोने पर बैंक द्वारा उठाए गए एकतरफा कदमों की न्यायिक समीक्षा अनिवार्य है, और ग्राहक—बैंकिंग प्रणाली पर अपनी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखे।