केंद्र सरकार ने अवैध आव्रजन रोकने के लिए कसी नीतियाँ, सुप्रीम कोर्ट से मिली वैधता

नई दिल्ली, 13 जून: केंद्र सरकार ने अवैध आव्रजन (Illegal Immigration) की समस्या से निपटने हेतु अपनी इमिग्रेशन नीतियाँ और अधिक कड़क कर दी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यह स्पष्ट किया कि भारत संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी कन्वेंशन का सदस्य नहीं है और राष्ट्रीय हितों की रक्षा को सर्वोपरि रखते हुए रोहिंग्या समेत किसी भी विदेशी समूह को स्थायी शरण नहीं दी जा सकती।

इससे पहले सरकार ने पासपोर्ट अधिनियम, 1920 और विदेशी नागरिक अधिनियम, 1946 के तहत सीमा नियंत्रण एवं विदेशी नागरिकों के प्रवेश-निकास के नियम सख्त किए थे। विभाजन काल में पाकिस्तान-बांग्लादेश से आए शरणार्थियों के लिए नेहरू और पंत-हरिबंश मिश्र समझौतों के तहत नागरिकता संबंधी अनेक छूट दी गई थीं, लेकिन मौजूदा शासन ने आव्रजन के पुराने हिन्दी में बने छिद्रों को भरने का निर्णय लिया है।

सरकार ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के दायरे का विस्तार कर अशुध्द प्रवासियों की पहचान और देशनिकाला तेज़ कर दिया है। दिल्ली में भाजपा शासित होने के बाद बड़ी संख्या में अवैध प्रवासियों ने खुद ही राजधानी छोड़ दी; वहीं असम में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर है जिसमें अवैध प्रवासी मां का देश निकाला जा चुका, जबकि पुत्र भारत में जन्मा होने का दावा कर रहा है।

सुरक्षा बलों में समन्वय सुधारने हेतु गृह मंत्रालय ने सीमा सुरक्षा बल (BSF) और इमीग्रेशन विभाग को मिलाकर कार्यदल गठित किया है, जो नकली वीज़ा जाल व मानव तस्करी पर नज़र रखेगा। विदेश विभाग ने भी विभिन्न देशों से वीज़ा एक्सचेंज प्रोटोकॉल पर पुनर्विचार शुरू किया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह “सख्त लेकिन न्यायसंगत” नीतियाँ देश की सुरक्षा एवं सामाजिक अखंडता को मजबूत करेंगी, बशर्ते इन्हें निष्पक्ष ढंग से लागू किया जाए।

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