सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: केवल रजिस्ट्री नहीं, सम्पत्ति स्वामित्व का निर्धारण कई दस्तावेजों पर निर्भर

 

फैसले की पृष्ठभूमि: सुप्रीम कोर्ट ने एक केस में टिप्पणी करते हुए कहा कि रजिस्ट्री एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, लेकिन यह अकेले यह साबित नहीं करता कि संबंधित व्यक्ति ही संपत्ति का मालिक है। संपत्ति के स्वामित्व का निर्धारण केवल रजिस्ट्री से नहीं बल्कि कब्जा, खतौनी, खसरा, सातबारा और अन्य सहायक दस्तावेजों के आधार पर भी होता है।

मुख्य विशेषज्ञों की राय: कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील वेंकट राव और प्रॉपर्टी मामलों की विशेषज्ञ हिना बिलावाला ने विस्तार से बताया कि संपत्ति खरीदने से पहले टाइटल और पजेशन (कब्जा) दोनों की जांच अनिवार्य है। रजिस्ट्री केवल एक ट्रांजैक्शन का रिकॉर्ड होती है। यदि पजेशन किसी और के पास है, तो वह व्यक्ति कोर्ट में जाकर अपने स्वामित्व का दावा कर सकता है।

रजिस्ट्रेशन और टाइटल में अंतर: भारत में प्रेज़म्प्टिव टाइटल सिस्टम है, जिसमें संपत्ति का वास्तविक मालिकाना हक केवल एक प्रक्रिया नहीं बल्कि पूरे दस्तावेजी इतिहास पर आधारित होता है। वेंकट राव ने समझाया कि सेल डीड, म्यूटेशन, खतौनी और कब्जे के साथ-साथ पिछले मालिकों का विवरण भी ज़रूरी है।

महाराष्ट्र और मुंबई का उदाहरण: हिना बिलावाला ने मुंबई के संदर्भ में बताया कि यहां सोसाइटी, शेयर सर्टिफिकेट, ट्रांसफर फॉर्म्स, पजेशन लेटर आदि दस्तावेज भी स्वामित्व सिद्ध करने के लिए आवश्यक होते हैं। उन्होंने बताया कि ई-सर्च पोर्टल के माध्यम से भी टाइटल की ऑनलाइन जांच की जा सकती है।

फैसले का असर: इस फैसले का सबसे बड़ा असर उन लोगों पर होगा जो सिर्फ रजिस्ट्री देखकर संपत्ति खरीदते हैं। अब हर खरीददार को यह सुनिश्चित करना होगा कि जिस व्यक्ति से वे संपत्ति खरीद रहे हैं, उसके पास उस संपत्ति का स्पष्ट और निर्विवाद टाइटल है। साथ ही यह भी ज़रूरी है कि संपत्ति पर किसी और का कब्जा न हो।

एडवर्स पजेशन और किरायेदारी की जटिलताएं: कार्यक्रम में यह भी स्पष्ट किया गया कि यदि किसी संपत्ति पर कोई अन्य व्यक्ति वर्षों से कब्जा जमाए हुए है और मालिक ने कोई कानूनी दावा नहीं किया, तो एडवर्स पजेशन का दावा किया जा सकता है। किरायेदारी के मामलों में यदि किरायेदार कानूनी रूप से रह रहा है तो मालिक को कब्जा वापस लेने के लिए कोर्ट जाना होगा।

प्रॉपर्टी खरीदने की चेकलिस्ट:

  1. टाइटल की 30 साल की जाँच कराएं।
  2. म्यूटेशन, खसरा, खतौनी जैसे दस्तावेजों को देखें।
  3. यदि बिल्डर से खरीद रहे हैं तो रेरा पोर्टल पर प्रोजेक्ट की जानकारी लें।
  4. सोसाइटी से संबंधित डॉक्यूमेंट्स जैसे शेयर सर्टिफिकेट की जांच करें।
  5. रजिस्ट्री के साथ पजेशन की स्थिति भी जांचें।
  6. किसी भी खरीद से पहले एक योग्य वकील की सलाह लें।

निष्कर्ष: यह फैसला भारत में संपत्ति के लेन-देन की प्रक्रिया को ज्यादा पारदर्शी और सुरक्षित बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। दर्शकों को सलाह दी गई कि किसी भी संपत्ति में निवेश से पहले सिर्फ रजिस्ट्री पर भरोसा न करें, बल्कि पूरे दस्तावेजी ढांचे की विधिवत जांच करवाएं।

 

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