भारत सरकार ने टर्किश कंपनी का सिक्योरिटी क्लीयरेंस विथड्रॉ किया, मामला दिल्ली हाई कोर्ट में पहुंचा

 

दिल्ली हाई कोर्ट में सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड, जो एक टर्किश कंपनी है, ने सुरक्षा अनुमति वापस लेने के भारत सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की है। सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज भारत के नौ बड़े एयरपोर्ट्स पर ग्राउंड क्लीयरिंग, लोडिंग और अनलोडिंग जैसे महत्वपूर्ण कार्य संभालती है। कंपनी का दावा है कि इस फैसले से उन्हें रोजाना करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है।

केंद्र सरकार ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज का सिक्योरिटी क्लीयरेंस वापस ले लिया था। सरकार की तरफ से कोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि यह फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि एयरपोर्ट की सुरक्षा और भारत के नागरिकों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। केंद्र सरकार के अनुसार, सुरक्षा एजेंसियों ने पर्याप्त समीक्षा के बाद ही यह निर्णय लिया है।

सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज की ओर से पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में कहा कि सरकार ने नोटिस जारी किए बिना ही सुरक्षा अनुमति वापस ले ली, जो नैसर्गिक न्याय (Natural Justice) के सिद्धांत के विरुद्ध है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की संविधान पीठ के मेनका गांधी केस के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें बिना अवसर दिए कार्रवाई न करने का निर्देश दिया गया था।

इस पर सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि सुरक्षा से जुड़े कारण सार्वजनिक रूप से उजागर करना राष्ट्रीय हित के विरुद्ध होगा। उनका कहना था कि यदि सुरक्षा चिंताओं की जानकारी सार्वजनिक होती है, तो इससे देश की सुरक्षा व्यवस्था को गंभीर खतरा हो सकता है।

कोर्ट की सुनवाई के दौरान कंपनी ने कहा कि सुरक्षा अनुमति वापस लिए जाने के कारण एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया सहित अन्य कंपनियां उनके साथ अनुबंध खत्म कर रही हैं। इसके कारण सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज के व्यवसाय पर गंभीर संकट आ गया है। हालांकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि उन्होंने कंपनी को भारत में काम करने से सीधे तौर पर नहीं रोका है, बल्कि सिर्फ सुरक्षा अनुमति वापस ली है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। न्यायालय ने भी स्पष्ट किया कि देश की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है और न्यायालय भी इस मामले में अपनी सीमाओं से अवगत है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि दिल्ली हाई कोर्ट इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या फैसला सुनाता है।

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