इज़राइल-ईरान संघर्ष में सीज़फायर की घोषणा, लेकिन टकराव अभी भी बाकी है

 

तीन साल बाद एक बार फिर इज़राइल और ईरान के बीच सैन्य टकराव ने मध्य पूर्व को संकट में डाल दिया। 13 जून से शुरू हुए इस संघर्ष में दोनों देशों के बीच लगातार हवाई हमले, मिसाइल अटैक और साइबर युद्ध देखने को मिला। करीब 12 दिन चले इस टकराव के बाद अब सीज़फायर की घोषणा हुई है, जिसे ईरान ने भी स्वीकार कर लिया है।

क्या हुआ संघर्ष के दौरान?

  • इज़राइल ने 13 जून को “ऑपरेशन राइजिंग लायन” शुरू किया और ईरान के 100 से अधिक ठिकानों पर हवाई हमले किए। इसमें न्यूक्लियर फैसिलिटीज और IRGC के मुख्यालय प्रमुख लक्ष्य थे।

  • इज़राइली एफ-35 फाइटर जेट्स ने जॉर्डन और इराक के एयरस्पेस से होकर ईरानी क्षेत्रों में बमबारी की।

  • जवाब में, ईरान ने भारी मिसाइल हमलों के साथ प्रतिक्रिया दी। इसमें पहली बार हाइपरसोनिक और क्लस्टर म्यूनिशन का उपयोग किया गया।

अमेरिका की कार्रवाई:

  • अमेरिका ने भी इस संघर्ष में हस्तक्षेप करते हुए ईरान की फरदो न्यूक्लियर साइट पर GBU-57 बम से हमला किया। हालांकि, नुकसान की सटीक जानकारी फिलहाल उपलब्ध नहीं है।

किसको कितना नुकसान?

  • रिपोर्ट्स के अनुसार, ईरान में 800 से अधिक नागरिकों की मृत्यु हुई है।

  • इज़राइल में 40-50 लोगों की जान गई है और कई शहरों में बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा।

  • इज़राइल की मिसाइल डिफेंस प्रणाली (जैसे आयरन डोम) ने हमलों का मुकाबला किया, लेकिन सीमित सफलता रही।

  • ईरान की एयर डिफेंस प्रणाली को भी इज़राइल की साइबर क्षमताओं से भारी नुकसान हुआ।

कौन जीता?

  • अगर सामरिक दृष्टि से देखा जाए, तो इज़राइल ने ईरान की न्यूक्लियर क्षमताओं और एयर डिफेंस सिस्टम को गंभीर क्षति पहुंचाई है।

  • लेकिन, ईरान अब भी सैन्य रूप से पूरी तरह से नष्ट नहीं हुआ है और उसकी प्रॉक्सी ताकतें (जैसे हिज़बुल्ला, हौथी) सक्रिय बनी हुई हैं।

आगे क्या?

  • विशेषज्ञों के अनुसार, यह संघर्ष का अंत नहीं है, बल्कि एक नए शीत युद्ध की शुरुआत हो सकती है — जिसमें प्रॉक्सी हमले, साइबर वारफेयर और न्यूक्लियर छाया संघर्ष मुख्य भूमिका निभा सकते हैं।

  • ईरान अब अपने न्यूक्लियर कार्यक्रम को और गोपनीय तरीके से आगे बढ़ा सकता है।

  • भविष्य में हिज़बुल्ला जैसे प्रॉक्सी ग्रुप्स के ज़रिए इज़राइल पर अप्रत्यक्ष हमलों की आशंका जताई जा रही है।

वैश्विक परिदृश्य:

  • अमेरिका ने इज़राइल को खुला समर्थन दिया है, जबकि चीन और रूस के ईरान के साथ संबंध और मज़बूत हो सकते हैं।

  • खाड़ी देशों जैसे सऊदी अरब और यूएई का झुकाव अब इज़राइल की ओर बढ़ता दिख रहा है।

  • 2015 के ईरान न्यूक्लियर डील (JCPOA) को अब मृत मान लिया गया है। ईरान किसी नए समझौते में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है।


निष्कर्ष:

“युद्ध शायद खत्म हो गया हो, लेकिन टकराव अभी बाकी है।”
इज़राइल ने इस लड़ाई में रणनीतिक बढ़त ज़रूर पाई है, लेकिन ईरान का सामरिक ढांचा अभी भी जीवित है। अगले चरण में हमें एक लंबा, धीमा और अधिक खतरनाक संघर्ष देखने को मिल सकता है।

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