क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति और गवर्नर की शक्तियों का प्रयोग कर सकता है? एक कानूनी विश्लेषण

भारत के संवैधानिक ढांचे में राष्ट्रपति, गवर्नर, और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। हाल ही में एक महत्वपूर्ण प्रश्न सामने आया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति और गवर्नर की शक्तियों का प्रयोग कर सकता है? इस प्रश्न का आधार सुप्रीम कोर्ट द्वारा 10 कानूनों को बिना राष्ट्रपति और गवर्नर की सहमति के लागू करवाना है। आइए, इसे विस्तार से समझें।


आर्टिकल 143 और राष्ट्रपति का रेफरेंस

संविधान के आर्टिकल 143 के तहत, राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह किसी भी कानूनी या संवैधानिक मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांग सकते हैं। इसे इन री (In Re) के नाम से जाना जाता है। जैसे कि इन री बेरुबारी केस या इन री रेफरेंस ऑफ 1970

प्रेसिडेंट का रेफरेंस क्यों महत्वपूर्ण है?
राष्ट्रपति का यह रेफरेंस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पहली बार देश में 10 कानून ऐसे बने जो बिना राष्ट्रपति या गवर्नर के हस्ताक्षर के कानून का रूप ले चुके हैं। संविधान के अनुसार, कोई भी कानून संसद से पारित होने के बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बिना लागू नहीं हो सकता। लेकिन यहां सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश से इन कानूनों को लागू करवा दिया।


संवैधानिक प्रावधान और उत्पन्न प्रश्न

यह मामला तीन महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रावधानों के इर्द-गिर्द घूमता है:

  1. आर्टिकल 141: सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए किसी भी निर्णय का पालन देश के सभी अदालतों पर अनिवार्य होता है।

  2. आर्टिकल 142: अगर कोई कानून का अभाव है, तो सुप्रीम कोर्ट न्याय की पूर्णता के लिए कानून बना सकता है।

  3. आर्टिकल 145 (3): संविधान की व्याख्या करने के लिए कम से कम पांच जजों की पीठ आवश्यक होती है।

मामला क्या है?
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने संविधान की व्याख्या करते हुए यह निर्णय लिया कि अगर गवर्नर ने तीन महीने के भीतर बिल पर हस्ताक्षर नहीं किए, तो वह अपने-आप कानून बन जाएगा। परंतु, संविधान कहता है कि संवैधानिक व्याख्या कम से कम पांच जजों की बेंच द्वारा की जानी चाहिए।


क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति और गवर्नर की शक्तियों का इस्तेमाल कर सकता है?

प्रश्न यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट, जो केवल संवैधानिक व्याख्या का अधिकार रखता है, राष्ट्रपति और गवर्नर की संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग कर सकता है?

  • संविधान के अनुसार: राष्ट्रपति और गवर्नर के हस्ताक्षर के बिना कोई भी कानून पूर्ण नहीं हो सकता।

  • सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में: कोर्ट ने गवर्नर की सहमति के बिना ही 10 कानूनों को लागू करवा दिया।


संवैधानिक विवाद और राष्ट्रपति का रेफरेंस

अब राष्ट्रपति ने आर्टिकल 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से रेफरेंस मांगा है:

  1. क्या सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 142 के तहत प्रोसीजरल लॉ (Procedural Law) ही बना सकता है या सब्सटेंटिव लॉ (Substantive Law) भी बना सकता है?

  2. क्या सुप्रीम कोर्ट गवर्नर और राष्ट्रपति की शक्तियों का प्रयोग कर सकता है?

  3. क्या दो जजों की बेंच संविधान की व्याख्या कर सकती है?


सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट: निर्णय या सलाह?

आर्टिकल 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट जो सलाह देता है, उसे सुप्रीम कोर्ट रिपोर्ट कहा जाता है। यह एक निर्णय नहीं होता, इसलिए यह बाइंडिंग (अनिवार्य) नहीं होती। उदाहरण के तौर पर, इंडो-पाक एग्रीमेंट 1962 और अयोध्या मंदिर केस 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के रेफरेंस को अस्वीकार कर दिया था।


क्या होगा आगे?

इस संवैधानिक असमंजस को सुलझाने के लिए संभवतः एक संवैधानिक पीठ का गठन किया जाएगा, जो यह तय करेगी:

  1. क्या सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 142 के तहत सब्सटेंटिव लॉ बना सकता है?

  2. क्या गवर्नर और राष्ट्रपति की संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग अदालत द्वारा किया जा सकता है?

  3. क्या दो जजों की बेंच संवैधानिक व्याख्या कर सकती है?

यह मामला भारतीय न्याय व्यवस्था में एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है। अगर सुप्रीम कोर्ट यह तय कर देता है कि वह राष्ट्रपति और गवर्नर की शक्तियों का प्रयोग कर सकता है, तो यह भारतीय संविधान की व्याख्या में एक बड़ा बदलाव लाएगा। राष्ट्रपति द्वारा मांगा गया यह रेफरेंस भारतीय न्याय प्रणाली के भविष्य के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

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