ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के बाद ब्रह्मोस मिसाइल की वैश्विक मांग तेज, वियतनाम से सऊदी अरब तक खरीदार कतार में
नई दिल्ली। ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के दौरान भारतीय हथियार प्रणालियों की प्रभावशीलता ने दुनिया भर में धूम मचा दी है। विशेष रूप से सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल ब्रह्मोस ने युद्ध जैसी परिस्थितियों में अपनी सटीकता और मारक क्षमता साबित कर दी, जिसके बाद दक्षिण-पूर्व एशिया से लेकर मध्य पूर्व और लैटिन अमेरिका तक कई देशों ने इस मिसाइल में गहरी रुचि दिखाई है।
ब्रह्मोस क्यों खास?
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तीन मैक तक की रफ्तार (ध्वनि की गति से तीन गुना)
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800 किलोमीटर तक बढ़ी रेंज
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फ़ायर-एंड-फ़ॉरगेट क्षमता और 1 मीटर तक की बेमिसाल सटीकता
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लैंड, सी, सबमरीन और एयर-प्लेटफॉर्म—सभी से प्रहार करने में सक्षम
कहां-कहां से आ रही हैं डील्स?
क्षेत्र | संभावित/पक्की डील | अनुमानित मूल्य |
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दक्षिण-पूर्व एशिया | वियतनाम (करीब $700 मिलियन, अंतिम चरण) • इंडोनेशिया ($200–350 मिलियन) • मलेशिया (Sukhoi-30 MKM में एकीकरण पर उन्नत वार्ता) • फिलीपींस को पहले ही दो बैच डिलीवर | $375 मिलियन (फिलीपींस) |
मध्य पूर्व | मिस्र (रेड सी सुरक्षा लिए सक्रिय बातचीत) • सऊदी अरब व यूएई (रेड सी व तेज़ रेस्पॉन्स बैटरी) • क़तर और ओमान (प्रारंभिक रुचि) | – |
अन्य | ब्राज़ील, चिली, अर्जेंटीना, वेनेज़ुएला, दक्षिण अफ़्रीका, बुल्गारिया (प्रारंभिक / मध्य चरण) | – |
घरेलू तैयारियां
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लखनऊ में नया उत्पादन केंद्र चालू; सालाना 100 से अधिक मिसाइलें बनेंगी, जिससे डिलीवरी समय घटेगा।
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सरकार का लक्ष्य: 2025 तक 5 अरब डॉलर के रक्षा निर्यात, जिसमें ब्रह्मोस प्रमुख योगदान देगा।
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छोटे देशों को लाइन-ऑफ-क्रेडिट, प्रशिक्षण और चुनिंदा ट्रांसफ़र-ऑफ-टेक्नोलॉजी के विकल्प भी दिए जा रहे हैं।
सामरिक असर
ब्रह्मोस की सफलता ने भारत को चीन और पश्चिमी हथियार-निर्भरता का व्यवहारिक विकल्प बना दिया है। बिना राजनीतिक शर्तों के निर्यात नीति और वास्तविक युद्ध-परीक्षित प्रदर्शन—दोनों ही कारक भारत को उभरते रक्षा बाज़ारों में विश्वसनीय साझेदार के रूप में स्थापित कर रहे हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, यदि उत्पादन क्षमता समय पर बढ़ाई गई तो ब्रह्मोस न केवल भारत के रक्षा-निर्यात लक्ष्य पूरे करेगा, बल्कि हिंद-प्रशांत में शक्ति-संतुलन को भी नया आयाम देगा।