वक्फ संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस, ‘वक्फ बाय यूज़र’ और पंजीकरण के कानून सवालों के घेरे में

 

नई दिल्ली, 22 मई 2025। सुप्रीम कोर्ट की प्रधान पीठ ने गुरुवार को वक्फ संशोधन कानून 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कई ज्वलंत मुद्दों पर पक्ष-विपक्ष की दलीलें सुनी और फैसला सुरक्षित रख लिया।

  • जनजातीय क्षेत्रों में वक्फ पर रोक
    याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि नया कानून अनुसूचित जनजाति (एसटी) इलाकों में वक्फ गठन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है, जो भेदभावपूर्ण है। इस पर न्यायमूर्ति ए. मसीह ने टिप्पणी की कि ‘इस्लाम कहीं भी हो, उसकी मूल धार्मिक मान्यताएँ एक-सी हैं’, जबकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि आदिवासी भूमि पर पहले से ही विशेष संवैधानिक और भूमि कानून लागू हैं, जिनका उद्देश्य स्वदेशी समुदायों की ज़मीन की रक्षा करना है।

  • ‘वक्फ बाय यूज़र’ बनाम अनिवार्य पंजीकरण
    केंद्र ने तर्क रखा कि वक्फ की प्रकृति मूल रूप से “संपत्ति हस्तांतरण” से जुड़ी है, न कि धार्मिक अधिकार से; इसलिए ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट और रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 के तहत ₹100 से अधिक मूल्य की हर अचल संपत्ति का पंजीकरण अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जब सौ साल से अधिक समय से पंजीकरण आवश्यक है — तो ‘वक्फ बाय यूज़र’ (कब्जे के आधार पर दावा) की प्रथा कैसे वैध ठहराई जा सकती है?

  • कपिल सिब्बल का दावा
    वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत को बताया कि राष्ट्रीय राजधानी में वक्फ बोर्ड के नाम केवल दो संपत्तियाँ ही विधिवत पंजीकृत हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर में एक भी रजिस्टर्ड वक्फ संपत्ति नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि पंजीकरण में विफलता राज्य सरकारों की कमी रही है, न कि वक्फ संस्थाओं की।

  • राज्य सरकारों की अलग-अलग राय
    राजस्थान और ओडिशा सरकारों ने संशोधन का समर्थन करते हुए कहा कि ‘वक्फ बाय यूज़र’ के आधार पर बड़े पैमाने पर सरकारी भूमि, यहाँ तक कि खनन पट्टों तक पर दावा किया गया है। उत्तर प्रदेश सर्वेक्षण रिपोर्ट का हवाला देते हुए केंद्र ने बताया कि राज्य में 97 % कथित वक्फ संपत्तियाँ या तो अतिक्रमण हैं या अनधिकृत कब्जा।

  • पाँच वर्ष की धार्मिक प्रैक्टिस की शर्त
    केंद्र ने यह भी स्पष्ट किया कि संशोधित धारा के अनुसार किसी मुसलमान को संपत्ति वक्फ करने से पहले कम-से-कम पाँच वर्ष तक इस्लाम का पालन कर ‘सतत धार्मिक आचरण’ सिद्ध करना होगा; यह शरिया अधिनियम 1937 की भावना के अनुरूप है, जिसमें इस्लाम स्वीकार करने की घोषणा आवश्यक है।

बहस के दौरान मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चन्द्रचूड़ ने संकेत दिया कि वक्फ संपत्तियों को भी आम नागरिक-संस्था की तरह राजस्व रिकॉर्ड में म्यूटेशन और वैधानिक सर्वेक्षण की प्रक्रिया से गुजरना चाहिए। कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया।

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