कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्देश: पुलिस बेवजह कॉल डिटेल रिकॉर्ड नहीं मांग सकती

 

यह फ़ैसला एक रिट याचिका (Writ Petition) पर सुनवाई के दौरान आया। याचिकाकर्ता श्री संजय त्रिवेदी ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने बिना किसी पुष्टि के उसके कॉल डिटेल रिकॉर्ड हासिल कर लिए और इस प्रक्रिया में उसकी निजता का हनन हुआ। त्रिवेदी का कहना था कि एफआईआर दर्ज किए जाने से पहले ही उसकी टेलि­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­­फोन कॉल रिकॉर्ड उपलब्ध कराए जाना अनुचित और अवैध था।

न्यायालय का तर्क
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) एक संवेदनशील और व्यक्तिगत जानकारी है, जिसमें किसी व्यक्ति के पूरे फोन कॉलिंग इतिहास, एसएमएस एवं डेटा उपयोग शामिल होते हैं। ऐसे रिकॉर्ड का खुलासा सीधे तौर पर किसी व्यक्ति की निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है। इसलिए, पुलिस को CDR हासिल करने से पहले निम्नलिखित शर्तें पूरी करनी आवश्यक हैं:

  1. न्यायिक अनुमति (Judicial Authorization): पुलिस को CDR मांगने के लिए पहले सत्र न्यायाधीश को विस्तृत आधार प्रस्तुत करके अनुमति लेनी होगी।

  2. विश्वसनीयता व औचित्य (Reasonable Grounds): अनुरोध में स्पष्ट होना चाहिए कि क्यों उस व्यक्ति का CDR आवश्यक है और इससे किस प्रकार का सबूत एकत्रित करने की संभावना है।

  3. अनुपातिकता का पालन (Proportionality): निजी डेटा जुटाने का उद्देश्य, उसके संभावित दुरुपयोग की आशंका और उस व्यक्ति के अधिकारों पर पड़ने वाले प्रभाव का संतुलन न्यायालय को देखना होगा।

उच्च न्यायालय ने माना कि पुलिस अक्सर बिना मान्यता प्राप्त CDR हासिल कर लेती है, जिससे न केवल जांच की निष्पक्षता प्रभावित होती है, बल्कि सार्वजनिक विश्वास भी टूटता है। इस तरह के कदम से सामाजिक विश्वास एवं संवैधानिक अधिकारों का हनन होता है।

आदेश का महत्व
न्यायालय ने अपने निर्देश में यह भी कहा कि कॉल डिटेल रिकॉर्ड केवल जांच के अंतिम विकल्प के रूप में हासिल किए जाएं, जब अन्य साधारण जांच पद्धतियाँ (जैसे प्रत्यक्ष साक्ष्य, गवाहों के बयान, फोरेंसिक परीक्षण) पर्याप्त न हों। न्यायालय ने यह निर्देश भी जारी किया कि अगर पुलिस किसी अभियुक्त के खिलाफ CDR प्राप्त करना चाहती है तो उसे याचिका दायर कर संबंधित सत्र न्यायाधीश से पूर्वानुमति (prior approval) अवश्य लेनी होगी।

उच्च न्यायालय के समक्ष पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्री अभय जोशी ने तर्क दिया कि टेलिकॉम कंपनियों के पास व्यक्तिगत कॉल रिकॉर्ड जमा रहने से संवैधानिक व्यवस्था में नागरिक की निजता पर अनावश्यक आघात हो रहा है। इस पर अदालत ने स्पष्ट किया कि टेलिकॉम कंपनियों में सहेजे गए डेटा को “राज्य का रिकॉर्ड” नहीं माना जा सकता, बल्कि यह व्यक्तिगत अधिकार अधिनियम (Right to Privacy) के अंतर्गत सुरक्षित है। जस्टिस गोदबोले ने कहा, “डिजिटल डेटा के युग में निजता का अधिकार कोई मामूली अधिकार नहीं रह गया है; यह एक मौलिक अधिकार बन चुका है।”

सरकार और पुलिस की प्रतिक्रिया
कर्नाटक पुलिस मुख्यालय ने उच्च न्यायालय के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि इस निर्णय से कानून प्रवर्तन में पारदर्शिता बढ़ेगी और नागरिकों का विश्वास कायम रहेगा। पुलिस अधिकारी डीएसपी सुरेश कुमार ने कहा, “हम हमेशा से ही कानूनी दायरे में रहकर जांच करते रहे हैं, लेकिन नए आदेश से CDR प्राप्ति में और भी सुनिश्चितता आएगी। हमें समाज की सहायता के लिए संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करना अनिवार्य है।”

वहीं, कर्नाटक राज्य सरकार ने भी आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए हैं कि सभी पुलिस थानों में CDR संबंधी प्रार्थनाएँ उचित फॉर्मेट में दर्ज की जाएँ और सत्र न्यायाधीश से पूर्वानुमति के बाद ही टेलिकॉम कंपनियों को सूचना भेजी जाए। गृह विभाग ने एक परिपत्र में कहा है कि “नागरिकों की निजता की रक्षा के लिए पुलिस विभाग को संवैधानिक प्रतिबद्धता निभानी होगी।”

विशेष विशेषज्ञों की राय
कर्नाटक यूनिवर्सिटी, सूचना विज्ञान विभाग की प्रोफ़ेसर डॉ. कृतिका देवकार ने इस निर्णय को समयानुकूल और उचित बताया। उनका कहना है, “डिजिटल युग में डेटा प्रोटेक्शन एक अंतरराष्ट्रीय विषय बन चुका है। भारत में भी सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया है। इस निर्णय ने पुलिस जांच के मानदंडों को और कड़ा करते हुए नागरिकों की सुरक्षा की दिशा में अहम कदम बढ़ाया है।”

इसी प्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता एस.आर. विजयलक्ष्मी ने बताया, “उच्च न्यायालय का यह निर्देश सूचनाओं के दुरुपयोग को रोकने में मददगार होगा। अक्सर पुलिस बिना किसी ठोस आधार के डेटा निकाल लेती है, जिससे निर्दोष लोगों को भी झेलना पड़ता है। अब कोर्ट की अनुमति के बाद ही यह प्रक्रिया हो सकेगी।”

निष्कर्ष
कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह नवीनतम आदेश नागरिकों के व्यक्तिगत गोपनीयता अधिकार को मजबूत करता है और विश्वास जगाता है कि कानून प्रवर्तन अपनी शक्तियों का प्रयोग संवैधानिक दायरे में रहकर करेगा। कॉल डिटेल रिकॉर्ड के दुरुपयोग को रोकने हेतु न्यायालय ने जो दिशानिर्देश जारी किए हैं, उनका अनुपालन आगामी समय में पुलिस जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता और विधिसम्मतता सुनिश्चित करेगा।

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