Principal Correspondent
Ranchi: प्रदेश भाजपा की सूरत अब बदली बदली सी है. फिलहाल पूर्व सीएम रघुवर दास झारखंड की राजनीतिक पिच से बाहर कर दिये गये हैं. उन्हें ओड़िशा के राज्यपाल के तौर पर जिम्मेदारी संभालने का मौका दिया गया है. झारखंड की राजनीति के अहम धूरी रहे पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा 2019 से ही केंद्र में मंत्री के तौर पर अपना दायित्व निभा रहे हैं. ऐसे में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी के और मजबूत होकर उभरने के दावे किए जा रहे हैं. 28 अक्टूबर को रांची में संकल्प यात्रा के समापन के बाद उनके स्तर से मिशन 2024 को देखते अपने स्तर से अपनी टीम तैयार करने की संभावना है. पिछले चार वर्षों में रघुवर दास, अर्जुन मुंडा को झारखंड की राजनीति से साइड किए जाने के बाद अब इस पर भी चर्चा है कि आखिर झारखंड में I.N.D.I.A गठबंधन (झामुमो, कांग्रेस, राजद) अगले साल राज्य में होने वाले चुनावों (लोकसभा, विधानसभा) के लिए क्या अपनी सियासी चाल नये सिरे से तय करेगा. आखिर वह अब किन-किन मुद्दों को लेकर झारखंड में अपनी राजनीति को लेकर आगे बढ़ेगी.
1932 का खतियान और बाहरी-भीतरी का मसला
I.N.D.I.A गठबंधन के नेता राज्य में अक्सर रघुवर दास को छत्तीसगढ़िया और बाहरी नेता कहते रहे हैं. खासकर झामुमो इसे लेकर ज्यादा ही मुखर रहा. कांग्रेस के सीनियर लीडर और मंत्री रामेश्वर उरांव भी कई दफे बाहरी-भीतरी का राग अलापते आये हैं. बाहरियों को दोना देना, कोना नहीं कहते रहे हैं. आदिवासी समाज के कल्याण और उनके लिए 1932 के खतियान की अनिवार्यता की बात भी झामुमो नेता जोर-शोर से करते आये हैं. उनके मुताबिक रघुवर दास आदिवासी विरोधी थे. सीएम रहते उन्होंने कई ऐसे कदम उठाए जिससे ट्राइबल समाज को नुकसान हुआ. सीएनटी कानून में सुधार की बात हुई. ऐसे ही मसलों को लेकर झामुमो, कांग्रेस भाजपा पर हमलावर होता रहा. 2019 से अबतक हुए उपचुनावों में रामगढ़ को छोड़कर सभी सीटों (दुमका, बेरमो, मधुपूर, बेड़ो, डुमरी) में जीत भी मिली.
रघुवर दास के मामले में भाजपा के शीर्ष लीडरों द्वारा लिए गये स्टेप के बाद अब I.N.D.I.A गठबंधन के लिए इस हथियार की धार कुंद होने की बात हो रही. बाबूलाल मरांडी ना सिर्फ मजबूत आदिवासी चेहरे के तौर पर और मजबूती से स्थापित होंगे बल्कि बाहरी-भीतरी लीडरशिप के नाम पर विपक्षी राजनीति अब मंद पड़ने की उम्मीद है. 1932 के खतियान के मसले पर भी भाजपा का दावा है कि झामुमो, कांग्रेस इसका क्रेडिट नहीं ले सकती. झारखंड अलग राज्य बनने के बाद सीएम रहते बाबूलाल ने ही इस मसले (खतियान) पर पहल की थी.एससी समाज से आने वाले और पूर्व मंत्री अमर बाउरी को भाजपा ने विधायक दल का नेता बनाया है. ऐसे में इस समाज के लोगों को भाजपा की ओर से वाजिब मान दिए जाने को लेकर उत्साह दिख रहा है. इस स्थिति में अब आदिवासी-मूलवासी चेहरे और खतियान के सवाल पर अब जोरदार राजनीति 2024 के चुनावों में देखने को संभवतः ना मिले.
सेलेक्टर से लेकर कैप्टन बने बाबूलाल
इधर, रघुवर दास प्रकरण के बाद विपक्षी खेमे के राजनीति की धार कुंद होने के अलावा यह भी कहा जा रहा है कि निर्विवाद रूप से बाबूलाल अब प्रदेश भाजपा में और प्रभावी हो गये हैं. कल तक पार्टी के तीन कोण माने जाते थे. अर्जुन मुंडा, रघुवर दास और बाबूलाल मरांडी. अब प्रदेश में निश्चित तौर पर बाबूलाल अपनी टीम तैयार करने से लेकर कैप्टन तक की भूमिका में हैं. अब प्रदेश में गुटबाजी की संभावनाएं क्षीण होने की उम्मीद है. ऐसे में अब सबकी नजर इस पर है कि बाबूलाल आने वाले चुनावों में फिनिशर की भूमिका कामयाबी के साथ निभा पाते हैं या नहीं.
+ There are no comments
Add yours