पाकिस्तान की साजिशों का अंत कैसे होगा? जानिए क्या है परमानेंट समाधान

 

नई दिल्ली: पाकिस्तान की तरफ से बार-बार किए जा रहे आतंकी हमलों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। 2016 में उरी, 2019 में पुलवामा और अब पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर भारत की सुरक्षा नीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के बावजूद पाकिस्तान की नापाक हरकतें रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हमें एक स्थाई समाधान की ओर बढ़ना चाहिए?


रेजिस्टेंस फ्रंट और पीपल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट: नई रणनीति या छलावा?

पहले पाकिस्तान लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों के लिए करता था। लेकिन 2019 में आर्टिकल 370 के हटने के बाद पाकिस्तान ने अपनी रणनीति बदली। अब उसने लश्कर-ए-तैयबा के एक नए फ्रंट “द रेजिस्टेंस फ्रंट” (TRF) और जैश-ए-मोहम्मद के “पीपल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट” (PAFF) का गठन किया।

इन संगठनों के नामकरण से ही पाकिस्तान की मंशा साफ झलकती है। TRF और PAFF जैसे नामों को चुनकर पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर खुद को “इस्लामिक आतंकवाद” के टैग से बचाने की कोशिश की है। अब यह संगठन खुद को “स्वतंत्रता सेनानी” और “एंटी-फासिस्ट” बताते हैं ताकि वामपंथी संगठनों और मानवाधिकार संगठनों का समर्थन मिल सके।


इंडस वाटर ट्रीटी का सस्पेंशन: नॉन-काइनेटिक स्ट्राइक

भारत ने पहलगाम हमले के जवाब में एक रणनीतिक कदम उठाते हुए “इंडस वाटर ट्रीटी” को सस्पेंड करने का निर्णय लिया। इस कदम ने पाकिस्तान को झकझोर कर रख दिया। पाकिस्तान ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि भारत इस तरह का नॉन-काइनेटिक स्ट्राइक करेगा।
नॉन-काइनेटिक स्ट्राइक का मतलब है बिना सैन्य कार्रवाई के, कूटनीतिक या आर्थिक नीतियों के जरिए दुश्मन को नुकसान पहुंचाना। इंडस वाटर ट्रीटी का सस्पेंशन पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है, क्योंकि पाकिस्तान की खेती और पीने का पानी इस पर काफी हद तक निर्भर है।


पाकिस्तान का न्यूक्लियर ब्लफ और भारत की रणनीति

पाकिस्तान का सबसे बड़ा हथियार उसकी न्यूक्लियर ब्लफ है। हर बार जब भारत सैन्य कार्रवाई की बात करता है, पाकिस्तान “न्यूक्लियर वार” की धमकी देता है। लेकिन क्या यह वास्तव में एक वास्तविक खतरा है?
विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान का न्यूक्लियर स्ट्राइक केवल एक मनोवैज्ञानिक रणनीति है। भारतीय खुफिया एजेंसियां मानती हैं कि पाकिस्तान के टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन्स डिसेंट्रलाइज़्ड तरीके से रखे गए हैं, जिनका कंट्रोल लोकल मिलिट्री कमांडर्स के हाथ में है।

भारत के पास तीन संभावनाएं हैं:

  1. C2 सिस्टम को हैक करना: पाकिस्तान के कमांड और कंट्रोल सिस्टम (C2) को साइबर अटैक के जरिए क्रिपल करना।

  2. मैलवेयर अटैक: C2 सिस्टम में मैलवेयर डालकर कम्युनिकेशन चैनल को ब्लॉक करना।

  3. स्पूफिंग: फेक सिग्नल भेजकर उनके न्यूक्लियर लॉन्च कमांड को कंफ्यूज करना।

अगर भारत यह कदम उठाता है, तो पाकिस्तान का न्यूक्लियर ब्लफ पूरी तरह से बेनकाब हो सकता है।


इजराइल की मदद: क्या यह समाधान हो सकता है?

भारत को अपनी सुरक्षा रणनीति में इजराइल का सहयोग लेना चाहिए। इजराइल ने अपने साइबर अटैक्स और इंटेलिजेंस क्षमताओं का बेहतरीन प्रदर्शन गाजा और ईरान के खिलाफ किया है। इजराइल के पास वो तकनीक और अनुभव है, जिससे पाकिस्तान के न्यूक्लियर सिस्टम को अस्थिर किया जा सकता है।
भारत को इजराइल के साथ मिलकर एक साइबर-ऑफेंसिव स्ट्रैटेजी तैयार करनी चाहिए, जिससे पाकिस्तान की न्यूक्लियर क्षमता को निष्क्रिय किया जा सके।


पाकिस्तान को घेरने की रणनीति: एक मल्टीडायमेंशनल अप्रोच

पाकिस्तान को कमजोर करने के लिए सिर्फ सैन्य कार्रवाई ही नहीं, बल्कि एक मल्टीडायमेंशनल अप्रोच की आवश्यकता है। इसके तहत हमें करना होगा:

  1. बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में विद्रोह को समर्थन: इससे पाकिस्तान की सेना का ध्यान बंटेगा।

  2. सीपेक (CPEC) और कराकोरम हाइवे पर अटैक: यह चीन के साथ पाकिस्तान के संबंधों को कमजोर करेगा।

  3. सिराइकी और सिंध प्रांत में अस्थिरता फैलाना: इससे पाकिस्तान की सेना को कई मोर्चों पर जूझना पड़ेगा।

  4. पंजाब में इंडस वाटर ट्रीटी का असर: पानी की कमी से वहां विद्रोह भड़क सकता है।


परमानेंट समाधान की ओर बढ़ें

अब समय आ गया है कि भारत को सर्जिकल स्ट्राइक या एयर स्ट्राइक जैसे सीमित ऑपरेशन से आगे बढ़ना चाहिए। पाकिस्तान का “न्यूक्लियर ब्लफ” खत्म करना और उसकी आतंकी गतिविधियों की रीढ़ तोड़ना ही एक स्थाई समाधान हो सकता है।
हमें मल्टीडायमेंशनल स्ट्रेटेजी के तहत पाकिस्तान की आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य क्षमताओं को लगातार कमजोर करना होगा। इजराइल जैसे सहयोगियों के साथ मिलकर साइबर-ऑफेंसिव स्ट्राइक करना और पाकिस्तान के इंटरनल फ्रंट्स को कमजोर करना भारत की स्थाई सुरक्षा नीति का हिस्सा बनना चाहिए।

क्या आपको लगता है कि भारत को इस बार परमानेंट समाधान की ओर बढ़ना चाहिए? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं!

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