पाकिस्तान की आर्थिक दुर्दशा और IMF की कठोर शर्तें: एक विहंगम विश्लेषण

 

पाकिस्तान की आज की विषम स्थिति का बीज उसी दिन बोया गया था जब उसका निर्माण ‘‘भारत को फ़तेह करने’’ के एकमात्र एजेंडे के साथ हुआ। जिन्ना की मूल रणनीति थी—या तो पूरे भारत पर मुसलमानों का राज वापस दो, अन्यथा ऐसा भू-भाग दो जहाँ से हम भविष्य में दिल्ली पर झंडा फहरा सकें। फलतः सैन्य विस्तार और जिहाद को प्राथमिकता मिली, जबकि उद्योग-व्यापार, शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे विकाससूचक क्षेत्र हाशिए पर रहे।

सेना-जिहाद केन्द्रित नीतियों के दुष्परिणाम

  • सत्ता-संविधान पर सेना का पूर्ण वर्चस्व: लोकतांत्रिक संस्थाएँ नाम मात्र की रहीं।

  • चरमपंथ का संस्थागत समर्थन: “रणनीतिक गहराई” के नाम पर तालिबान और अन्य आतंकी गुट पाले गए—जिसे इमरान खान और ख्वाजा आसिफ खुलकर स्वीकार चुके हैं।

  • ** अर्थव्यवस्था का सुनियोजित अनदेखा**: निर्यात-आधार विकसित नहीं हो सका, विदेशी मुद्रा भंडार लगातार घटा।

IMF से नई राशि, मगर 50 कड़ी शर्तें

हालिया संघर्षों में हवाई अड्डों व आतंकी ढांचों पर भारत की सर्जिकल कार्रवाइयों ने पाक अर्थतंत्र को और ठप कर दिया। अस्तित्व बचाने के लिए इस्लामाबाद ने 7 अरब डॉलर का पैकेज माँगा जिसे IMF ने भारी दबाव और शर्तों के साथ स्वीकृत किया:

प्रमुख शर्त निहितार्थ
रक्षा बजट वृद्धि 12 % तक सीमित सेना-केंद्रित मॉडल पर लगाम
3 वर्ष से पुरानी कारों के आयात-प्रतिबंध समाप्त बाहरी उत्पादों से घरेलू विनिर्माण को झटका
ऊर्जा दरों में अधिभार वृद्धि आम उपभोक्ता पर महंगाई का सीधा भार
कृषि-आयकर कानूनों का डिजिटल निगरानी तंत्र आंतरिक शासन में विदेशी दखल
वार्षिक बजट पर IMF की पूर्व-मंज़ूरी अनिवार्य आर्थिक संप्रभुता का लगभग अंत

संक्षेप में, IMF की ये शर्तें पाकिस्तान की आर्थिक नीति, कर-व्यवस्था, यहाँ तक कि रक्षा आवंटन पर भी सीधा नियंत्रण स्थापित कर देंगी—ब्रिटिशकालीन ‘सब्सिडियरी एलायंस’ की आधुनिक पुनरावृत्ति।

चीन की गिरफ़्त और ऋण-जाल

ऊपर से, चीन-पाक आर्थिक गलियारे (CPEC) में लिए गए अपार छिपे कर्ज़ को सार्वजनिक न कर पाने के कारण पाक की ऋण-जिम्मेदारी और जटिल हो गई है। IMF तक बार-बार विवरण माँगता रहा; अब युद्धविराम के दबाव में ही राशि जारी की गई है।

भारत का तुलनात्मक परिदृश्य

भारत ने भी 1991 में भुगतान-संकट झेला, पर सुधारवादी नीतियों और बाद में अटल बिहारी वाजपेयी तथा नरेंद्र मोदी की सरकारों ने संरचनात्मक सुधार कर अर्थव्यवस्था को विश्व की शीर्ष शक्तियों में ला खड़ा किया:

  • आज भारत रक्षा निर्यातक बनने के साथ-साथ डिजिटल अर्थव्यवस्था, अंतरिक्ष और विनिर्माण के वैश्विक हब में शामिल है।

  • IMF में भारत न केवल कर्ज़दार नहीं, बल्कि साझेदार पूँजीदाता है।

पाकिस्तान आज सेना-जिहाद-केंद्रित नीति का प्रत्यक्ष दुष्परिणाम भुगत रहा है—जहाँ आर्थिक संप्रभुता IMF की कठोर शर्तों के आगे गिरवी हो चुकी है। यदि इस्लामाबाद ने अभी भी विकास, व्यापार और लोकतांत्रिक संस्थाओं को प्राथमिकता नहीं दी, तो वह अवशेष रूप से बाहरी सरपरस्ती वाला राज्य बनकर रह जाएगा।

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