एंट्री-लेवल जजों के लिए न्यूनतम प्रैक्टिस मानक तय होगा या नहीं? सुप्रीम कोर्ट की तीन-जजीय पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा
नई दिल्ली, 20 मई 2025
सुप्रीम कोर्ट की तीन-सदस्यीय पीठ—मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन—ने ऑल इंडिया जजेज़ असोसिएशन बनाम भारत संघ मामले में अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है। प्रमुख प्रश्न यह है कि निचली न्यायिक सेवाओं में नियुक्त होने वाले सिविल जज (जूनियर डिविजन) के लिए कम से कम दो-तीन वर्ष की वकालत अनिवार्य की जाए या उन्हें स्नातक के तुरंत बाद भी मौका मिले।
मामला क्यों अहम है?
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1993 के ऐतिहासिक ऑल इंडिया जजेज़ असोसिएशन फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सिविल जज पद के लिए कम से कम तीन वर्ष का प्रैक्टिस अनुभव जरूरी बताया था।
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2002 में इसी दिशा-निर्देश पर पुनर्विचार करते हुए अदालत ने कहा था कि यह बाध्यता न रहने से भर्ती में तेजी आएगी, क्योंकि अनुभवी वकील निजी प्रैक्टिस छोड़ कर सरकारी सेवा में आने में रुचि कम दिखाते हैं।
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कई उच्च न्यायालय अब भी अनुभव अनिवार्य मानते हैं, जबकि कुछ राज्यों ने फ्रेश लॉ-ग्रेजुएट को सीधे भर्ती करने की नीति लागू कर दी है। इससे भर्ती मानकों में असंगति पैदा हुई है।
न्यायपालिका में खाली पद और गुणवत्ता का सवाल
विभिन्न राज्यों में निचली न्यायिक सेवाओं के सैकड़ों पद वर्षों से रिक्त हैं। आलोचकों का तर्क है कि बिना व्यवहारिक अनुभव वाले “फ्रेशर” जज अक्सर जटिल मामलों में कानूनी सिद्धांतों की गहराई नहीं पकड़ पाते, जबकि समर्थकों का कहना है कि द्विवर्षीय न्यायिक प्रशिक्षण देकर नई प्रतिभा तैयार की जा सकती है।
पिछली अदालती टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान पीठ ने इस ओर भी इशारा किया कि
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सीनियर एडवोकेट नामांकन-प्रक्रिया और एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड परीक्षा जैसे परीक्षणों से न्यायालय स्वयं गुणवत्ता सुनिश्चित करता है;
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उसी तर्ज़ पर निचली अदालतों के लिए भी किसी न्यूनतम मानक या परीक्षा पर विचार किया जा सकता है, जिससे भविष्य में उच्च न्यायालय व सुप्रीम कोर्ट में भी उत्कृष्ट न्यायाधीश तैयार हों।
आगे क्या?
पीठ का सुरक्षित निर्णय तय करेगा कि
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सभी राज्यों में एक समान अनुभव मानक लागू होगा या नहीं,
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खाली पद भरने के लिए फ्रेशर भर्ती का मार्ग खुला रहेगा,
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या कोई संयुक्त मॉडल—प्रैक्टिस अनुभव + प्रशिक्षण—लागू किया जाएगा।
फैसले का असर भर्ती नीति, कोचिंग उद्योग और न्यायिक प्रशिक्षण ढांचे—all पर पड़ेगा। जैसे ही सुप्रीम कोर्ट आदेश जारी करेगा, उसके विस्तृत प्रभावों पर चर्चा जारी रहेगी।